पिछले छह महीनों में,
देखा मैंने प्यार, दुलार और एक भार,
प्यार, दुलार जो दिया मुझे,
पर्वत, हवाओं और पत्तियों के जंगल ने,
उगते सूरज की गर्माहट ने,
बढ़ते चाँद की ठंडक ने,
हर पल एक साथ, एक हाथ दोस्ती का,
सिकुड़े हुए कमरे की चार दीवारी ने,
खिड़की पर टंगे और हिलते परदों ने,
भार, भार था बस एक एहसास का,
सिर्फ जिसे लायी थी शहर में,
उम्मीद को पूरा कर पाने का भार,
सपनों को हकीक़त में बदलने का भार,
आज नही है उस भार का एहसास,
मगर है अब एक और ही एहसास,
उस प्यार और दुलार के दूर जाने का,
खुद में घुल चुके है ये पर्वत, हवाएं और जंगल,
वो हाथ दोस्ती का, दीवारे और हिलते हुए परदें,
पिछले छह महीनों में,
पाया मैंने प्यार, दुलार और एक भार...
-शुभी चंचल
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