Aagaaz.... nayi kalam se...

Aagaaz.... nayi kalam se...
Kya likhun...???

Sunday, January 1, 2017

कोरियर

दिवाकर- ... तो कैसी लगी कविता?
दिशा- बहुत गहरी.. हमेशा की तरह।
दिवाकर मुस्करा देता है।
दिशा- तुम ये सब सोच कैसे लेते हो? मतलब मैं जब भी लिखने की कोशिश करती हूं... ऐसा बिल्कुल नहीं सोच पाती।
दिवाकर- सोचता कहां हूं... खुद आ जाता है मन में।
दिशा- वही तो। यू आर वेरी टैलेंटेड... आई मस्ट से।
दिवाकर- नहीं टैलेंट-वैलेंट कुछ नहीं। इंस्पिरेशन है... प्रेरणा।
दिशा- क्या प्रेरणा?
दिवाकर उसे देखता है फिर सिर नीचे करके कहता है- तुम नहीं समझोगी।
दिशा पेड़ से एक पत्ती तोड़ लेती है... उसे घुमाते हुए कहती है- तुम समझाओ तो सही।
दिवाकर- पत्ती तोड़ना बुरी बात है। पेड़ को बुरा लगता होगा।
दिशा- ओफ्फो। अच्छा सुनो अब मैं जा रही हूं। प्रेरणा के बारे में कब बताओगे?
दिवाकर मुस्कराते हुए- जल्द ही।
दिशा- ओके देन बाय।
दिवाकर- कल आओगी न?
दिशा- हां पर थोड़ी देर से... मार्केट जाना है, बड्डे की शॉपिंग करनी है। मेरा गिफ्ट याद है न? लाना मत भूलना...
दिवाकर अपने हाथों से टेक लगाकर आराम से बैठ जाता है और कहता है- उसी दिन तुम्हें प्रेरणा के बारे में बता दूंगा... ये गिफ्ट ठीक रहेगा न?
दिशा- खाली हाथ नहीं, कुछ लेकर आना।
दिवाकर- ओके, ध्यान रखना अपना।
दिशा- हम्म, बाय।
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रोज़ की मुलाक़ात... कुछ कहा-अनकहा, दिवाकर की कविताएं... दिशा के सवाल।
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तीन दिसम्बर, दिशा का बड्डे।

दिवाकर नीले रंग की शर्ट पहनता है। नीला रंग दिशा का फेवरेट है। उसे कोई गिफ्ट समझ नहीं आ रहा था। उसने चॉकलेट का पैकेट खरीद लिया और अपनी सबसे पसंदीदा कविता रंगीन कागज़ में उतार दी।
कागज़ पर सबसे ऊपर लिखा था- तुम्हारी आंख का काजल।
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उस दिन दिशा अकेले नहीं आयी। उसकी एक दोस्त भी साथ थी।
दिशा ने भी नीले रंग का टॉप पहन रखा था।
दिवाकर को देखते ही बोली- ओह हो सेम टू सेम।
दिवाकर ने बिना पैकेट पकड़ाए कहा- हैप्पी बड्डे दिशा।
दिशा ने पैकेट देख लिया था, बोली- थैंक्यू।

फिर दिशा ने अपनी दोस्त से मिलवाया-
ये तरन्नुम है, मेरे बचपन की दोस्त... बताया था न तुम्हें... हम लोग रेस्तरां गए थे पार्टी करने।
दिवाकर ने मुस्कराकर हेलो बोला।
तरन्नुम ने भी सिर हिलाया।
फिर उसने दिशा से कहा कि उसे कहीं और भी जाना है।
बाय कहकर वो चली गई।
दिवाकर अपनी उसी पुरानी बेंच पर बैठ गया।
दिशा आज किसी और ही दुनिया में थी।
लंबी सांस लेते हुए धप से बेंच पर बैठ गई।
फिर बोलने लगी- यार आज इत्ता खा लिया, कुछ नहीं छोड़ा। चाउमिन, मंचूरियन, आइसक्रीम और ऊपर से केक भी।
सब दोस्त आ गए थे। मजा आ गया। फिल्म जाने को बोल रहे थे पर मैंने मना कर दिया।
खैर तुम क्या मुस्की मार रहे हो... चलो मेरा गिफ्ट दो।
दिवाकर ने पैकेट पकड़ा दिया।
दिशा ने कहा- वाह.. मेरी फेवरेट चॉकलेट...
अच्छा पोयम भी है।
पढ़कर सुनाओ न।
दिवाकर- नहीं आज तुम खुद पढ़ो।
दिशा- ओके
दिशा कविता पढ़कर मुस्कराती रहती है और दिवाकर एकटक उसे देखता रहता है।
अचानक दिशा को कुछ याद आता है।
वो मुड़कर पूछती है- अरे दिवा, वो प्रेरणा वाली बात। तुमने कहा था न बड्डे पर बताओगे।

दिवाकर- पूरी पढ़ ली कविता? कैसी लगी?
दिशा- बहुत बहुत बहुत अच्छी। प्रेरणा बताओ न प्लीज़।

दिवाकर- तुम सचमुच इत्ती मासूम हो क्या?
दिशा झेपते हुए... प्लीज़ दिवा बोलो न प्रेरणा क्या है तुम्हारी?

दिवाकर- दिवाकर उसे देखता रहता है फिर धीरे से कहता है.... तुम
दिशा शांत हो जाती है जैसे दिवाकर को बोलने की मोहलत दे रही हो।
दिवाकर- दिशा जब हम मिले थे तो तुम मुझे बेपरवाह, ज़िन्दगी को मज़ाक समझने वाली, अपनी ही दुनिया में गुम नज़र आती थी।
मतलब मुझसे बिलकुल अलग।
लेकिन पता नहीं कब तुम्हारा यही नेचर मुझे अच्छा लगने लगा। जैसे ये सब मुझे पूरा करता हो।
दिशा क्या हम उम्र भर साथ नहीं चल सकते।
वैसे तो अभी मैं खुद किसी सैटलमेंट के लिए तैयार नहीं हूं लेकिन तुमसे ये कहना ज़रूरी हो गया था।
तुम्हारी जॉब भी अच्छी चल रही है... अब शायद तुम्हारे घर वाले शादी की बात करें... ऐसे में तुम्हारा ये जानना ज़रूरी है न।
कुछ देर दोनों कुछ नहीं बोलते।
फिर दिवाकर दिशा के हाथ पर अपना हाथ रख देता है... कुछ बोलोगी नहीं?

दिशा गंभीर सी लगती है... वो भी दिवाकर का हाथ पकड़ लेती है..

दिवा तुम बहुत अच्छे हो... तुम सबसे अलग हो। तुम्हारा साथ सपनों के जैसा है... जहां तुम मुझे परियों की तरह रखोगे....
थोड़ी देर की चुप्पी के बाद दिशा फिर कहती है...
लेकिन दिवा ज़िन्दगी सपना नहीं है.. तुम अपने करियर के बारे में कभी नहीं सोचते। तुमने कभी सोचा है कि कब तक तुम अपने भाई से पैसे लेते रहोगे?
वो हमेशा तो तुम्हारा खर्च नहीं उठा पाएंगे न।
हमारे साथ चलने के लिए हम दोनों का कमाना ज़रूरी होगा।
मेरी सैलरी से पूरा घर नहीं चल सकेगा।
और हां पापा भी कल मज़ाक में कह रहे थे कि एक और बड्डे आ गया तुम्हारा।
शादी का क्या प्लान है..
मैंने हंसकर टाल दिया।
दिवाकर बहुत शांत था।
अचानक बोला- मुझे एक साल का टाइम दो दिशा... मैं जॉब ढूंढ लूंगा... जैसी मैं कर सकूं।

दिशा उसे कुछ देर देखती है और मुस्करा देती है...  ओके माय डिअर... दिया एक साल... और ज़ोर से हंस देती है।
दोनों चॉकलेट खाते हैं फिर दिशा चली जाती है।

दिवाकर वहीं बैठा रहता है...।
घंटों बीत जाते हैं उसे पता नहीं चलता...।

कई दिनों तक दोनों नहीं मिल पाते।
एक दिन दिवाकर दिशा को फ़ोन करके आज ही मिलने को कहता है।

दिशा टाइम से उसी पार्क में पहुंच जाती है जहां दोनों हमेशा मिलते रहे हैं।
दिवाकर पहले से पुरानी बेंच पर बैठा होता... थोड़ी हड़बड़ाहट के साथ... जैसे उसे कहीं जाना हो, कहीं पहुंचना हो।

दिशा- हाय दिवा..
दिवाकर मुस्कराकर- कैसी हो?
दिशा हंसते हुए- बहुत अच्छी.. हूं न?
दिवाकर- हां।
दिशा- क्यों बुलाया दिवा? वो भी अर्जेन्ट...
दिवाकर- यहां कुछ हो नहीं रहा... मुझे लगता है कि मुम्बई में शायद मेरे लायक काम हो।
दिशा- तो अच्छा है न... चले क्यों नहीं जाते मुम्बई?
दिवाकर- तुम्हारे लिए इतना आसान है? मुझे तो अजीब सा महसूस होता है यहां से दूर जाने के नाम पर...
दिशा- इसमें अजीब क्या है दिवा? कितने ही लोग काम के लिए दूसरे शहर जाते हैं। वैसे भी यहां भी तो तुम रेंट पर ही हो।
दिवाकर- तुम्हें मुझसे मिलने का मन नहीं करेगा?
दिशा- तुम किसी और प्लेनेट पर थोड़ी जा रहे हो.. आते-जाते रहना। और जब तुम्हारी जॉब फिक्स हो जाएगी तो मैं भी आउंगी तुमसे मिलने।
दिवाकर उदास बैठा रहता है।
दिशा- अरे मेरे दिवा... तुम बहुत सोचते हो। आगे बढ़ने के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा और मुझे पूरा यकीन है तुम्हें तुम्हारे टाइप की जॉब ज़रूर मिल जाएगी।
दिवाकर दिशा को निहारता है।
दिशा- चलो अब स्माइल करो और एक कविता सुनाओ... बहुत दिन हो गए।
दिवाकर उसे दूर जाने की एक कविता सुनाता है।
दिशा ताली बजाती है... वाह जी... क्या सोच है... ओह सॉरी ये तो प्रेरणा है...
फिर हंस देती है।
दिवाकर भी हंस देता है।
दिवाकर- ठीक है फिर, मैं मुम्बई जाता हूं। जल्द से जल्द नौकरी ढूंढ कर तुम्हारे पापा से मिलने आऊंगा। अच्छा ये बताओ कितनी सैलरी होनी चाहिए अच्छे दामाद की...?
दिशा- अरे यार ऐसा कुछ नहीं है। एक अच्छी जॉब होना ज़रूरी है बस.. बाकी मैं संभाल लूंगी पापा को।
दिवाकर- हम्म। ओके.. तुम जाओ... शाम हो रही है। अपना ध्यान रखना।
दिशा- हम्म। यू टू एंड ऑल द बेस्ट। जल्दी आना। बाय।
दिवाकर- हाथ हिला देता है... उसके गले में कुछ गड़ रहा होता है इसलिए वो बोल नहीं पाता।
दिशा के जाने के बाद वो रो पड़ता है... फिर कोई देख न ले इस डर से आँख पोंछ कर उठ जाता है।
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दिवाकर को मुम्बई गए छह महीने हो जाते हैं... इन छह महीनों में वो तीन नौकरियां छोड़ चुका है।
उसने सीरियल में असिस्टेंट राइटर की जॉब इसलिए छोड़ दी क्योंकि उसे सीरियल की कहानी के ट्विस्ट अच्छे नहीं लगे।
फिर उसने 20 हज़ार की नौकरी अपने बॉस के रूड नेचर  की वजह से छोड़ दी।
एक मैगज़ीन की नौकरी इसलिए छोड़ दी क्योंकि वहां के दूसरे कर्मचारी महिला कर्मचारियों पर पीठ पीछे फब्तियां कसते थे और उसके विरोध करने पर उसको भी परेशान करने लगे थे।
फिलहाल अभी दिवाकर नौकरी की तलाश में था।
इस बीच दिशा से बात बहुत कम हो गई थी। दिशा दिन में जॉब करती थी। दिवाकर अक्सर नाईट ड्यूटी करता था। छुट्टी भी अलग-अलग दिन मिलती थी।
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एक दिन दिवाकर ने सोचा दिशा को कुछ भेजा जाए।
उसने दिशा के लिए फैशन स्ट्रीट से एक नीले रंग का टॉप ख़रीदा।
एक कविता रंगीन कागज़ में उतारी और कोरियर कर दिया।
4-5 दिन बाद दिशा का फ़ोन आया।
वो पहले की तरह खिलखिला रही थी... बोली बहुत अच्छा टॉप था दिवा। मेरे ऑफिस में सबने खूब तारीफ की।
कहां से लिया... तुम्हारी पसंद अच्छी है।
दिवाकर थोड़ा उदास था... उसे हर पल दिशा दूर जाती दिखती थी। वो शांति से बस दिशा को सुन रहा था।
दिशा- क्या हुआ मिस्टर? कहां हो?
अच्छा ये सब छोड़ो तुम्हारी जॉब कैसी चल रही है?
दिवाकर- मैंने वो जॉब भी छोड़ दी... बताया था न कलीग्स का मैटर।
दिशा- अरे यार तुम भी न... तुम्हें अपने काम से काम रखना था। क्यों दूसरों के पचड़े में पड़ते हो। हर ऑफिस में पॉलिटिक्स होती है। इससे कब तक भागोगे?
दिवाकर- तुम्हारा मतलब है मैं अपने सामने औरतों के बारे में उलटी-सीधी बातें सुनूं?
दिशा- नहीं पर ओवर रिएक्ट करने की भी तो ज़रूरत नहीं। इसमें जॉब छोड़ने की क्या ज़रूरत थी।
दिवाकर- तुम नहीं समझोगी।
दिशा थोड़ी नाराज़ सी हो जाती है।
हां मैं नहीं समझूंगी। तुम्हें कोई समझ भी नहीं सकता। तुम अपने लिए एक ख़ास दुनिया चाहते हो।
दिवाकर-हां शायद, और उस दुनिया में तुम्हारा होना बहुत ज़रूरी है।
दिशा- दिवा प्लीज़। .....ऐनीवेज़ मुझे अभी जाना है। बाद में बात करते हैं।
दिवाकर- ओके अपना ध्यान रखना।
दिशा-हम्म बाय।
फ़ोन कट जाता है लेकिन दिवाकर उसे कान से हटा नहीं पाता। इस बात का एहसास उसे कुछ पलों के बाद होता है।
वो बिस्तर पर लेट जाता है।
उसे लगता है दिशा सही कह रही थी। उसे इतनी जल्दी जॉब नहीं छोड़नी चाहिए थी।
लेटे-लेटे वो कब सो गया उसे पता भी नहीं चला।

उठने के बाद वो अपने लिए कॉफी बनाने किचन में गया  लेकिन वहां सारे बरतन जूठे हैं। दिवाकर वापस लौट आया।
शर्ट पहनी और न्यूज़ पेपर लेने बाहर चला गया।
मार्केट से पेपर और दो वड़ा पाव लिए।
घर आकर वो न्यूज़ पेपर में पागलों की तरह जॉब वाले पन्ने पर गोले लगाता है और गुस्से में पेपर ज़मीन पर फेंक देता है।
पागलों की तरह हड़बड़ाहट में पाव खाता है और फिर लेट जाता है।
उसके दिमाग में दिशा की अलग दुनिया वाली बात गूंजती रहती है।

दिशा... उसकी बातें... हंसी.... कविताएं... दिशा के पापा... जॉब.... दिशा।

दिवाकर को लगता है वो पागल हो जाएगा।
वो लाइट बंद करके सो जाता है।

अगली सुबह वो जॉब इंटरव्यू के लिए तैयार होता है।
एक ऑफिस से दूसरे ऑफिस चक्कर काटता रहता है। कई मेल आईडी पर अपनी सीवी भेजता है।
कहीं उसके पसन्द की जॉब नहीं मिलती।
इसी दौड़भाग में तीन महीने और बीत जाते हैं।
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दिशा से बात लगभग बंद हो चुकी है। दिवाकर अब खुद जॉब ढूंढने की कोशिश नहीं करता। अगर उसके पास कोई कॉल आ जाए या उसे कोई वेकैंसी बता दे तो वो इंटरव्यू देने चला जाता है।

उसे दिन रात दिशा को खो देने का ख्याल रहता है। वो सिर्फ इस डर से भागने की कोशिश करता रहता है।
दो लोगों के बीच प्यार बना रहने के लिए उनका मिलना ज़रूरी है। आमने-सामने। खासकर उसके लिए जिसका प्यार पूरी तरह परवान न चढ़ा हो।

दिशा और दिवाकर के बीच दूरियां आ गईं थीं। दिशा के प्यार को अब भी मिलने की ज़रूरत थी।

दिवाकर फिर दिशा को कुछ भेजना चाहता है लेकिन अब उसके पास टॉप या गिफ्ट के लिए ज़्यादा पैसे नहीं हैं।
वो अपनी कई सारी कविताएं पन्नों पर लिखता है और कोरियर कर देता है।

इस बार कोरियर भेजने के बाद भी दिशा का फ़ोन नहीं आया।
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अगले महीने दिशा का बड्डे है... कितने महीने हो गए दिशा को देखे.... क्या वो अब भी उसी तरह खिलखिलाकर हंसती होगी... उसने अपनी बड्डे के लिए शॉपिंग शुरू कर दी होगी.... उसके पापा ने फिर उससे शादी की बात तो नहीं की.... दिशा ने क्या कहा होगा... क्या वो मेरे बारे में बता सकी होगी....

दिवाकर के मन में हज़ारों सवाल घूम रहे थे। वो बहुत कमज़ोर हो गया था। कई दिनों से उसकी तबीयत भी ठीक नहीं थी।
अचानक उसका फ़ोन बजा।

हेलो... दिवाकर बोल रहे हैं।
जी हां, आप कौन?
मैं रिदम एडवरटाइज़िंग लिमिटेड से बोल रही हूं।
जी, बताइए।
आपने कंटेंट राइटर की पोस्ट के लिए अप्लाई किया था?
दिवाकर को याद नहीं आया।
उसने कहा- जी किया होगा, इस वक़्त याद नहीं।
आपका इंटरव्यू है कल सुबह 11 बजे... क्या आप आना चाहेंगे?
जी, मैं आऊंगा।
ओके, तो मैं पूरी डिटेल्स आपके ईमेल आईडी पर भेज रही हूं.... थैंक्यू सो मच।
जी, थैंक्यू।

दिवाकर के पास नेट पैक नहीं था। वो कैफ़े चला गया।
अगले दिन उसका इंटरव्यू काफी अच्छा रहा। बड़ी कंपनी थी। पैकेज भी अच्छा था। उन लोगों को दिवाकर की लिखावट बहुत पसंद आयी।

दिवाकर बहुत खुश था। उसने सोचा दिशा को बताए लेकिन फिर सोचा बात पक्की हो जाए तभी उससे कहेगा।

कई दिन बीत गए। दिवाकर के पास कोई कॉल नहीं आया। उसने नेट पैक भी डलवा लिया जिससे कोई मेल न छूट जाए। उसकी उम्मीद टूट रही थी।
दिशा का बड्डे आने वाला था। उसने कोई गिफ्ट नहीं लिया था।
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दो दिसम्बर...

दिवाकर का फ़ोन बजा।

हेलो, दिवाकर बोल रहे हैं।
जी हां, आप कौन?
मैं रिदम एडवरटाइज़िंग लिमिटेड से बोल रही हूं।
जी, बताइए।
मिस्टर दिवाकर, आपने कन्टेंट राइटर के लिए इंटरव्यू दिया था। आप उसके लिए सेलेक्ट हो गए हैं। कॉन्ग्रेचुलेशन्स।
थैंक्यू सो मच मैम।
आप अपने डॉक्युमेंट कल जमा कर दीजिए। आपकी जॉइनिंग कल ही होनी है। आई मीन थर्ड डिसम्बर। ओके?
तारीख सुनकर दिवाकर कहीं खो गया।
हेलो, आर यू देयर मिस्टर दिवाकर?
ओह हां... ओके मैम मैं कल पहुंच जाऊंगा।
ओके, थैंक्यू।
थैंक्यू मैम, थैंक्यू सो मच।

दिवाकर को लगा वो कोई सपना देख रहा है। उसने तुरंत दिशा का नंबर लगाया पर अगले ही पल काट दिया।
नहीं, अभी नहीं बताऊंगा। कल जॉइनिंग के बाद बड्डे विश के साथ बताऊंगा.... उसके लिए बेस्ट गिफ्ट होगा। काश कुछ दिन पहले कॉल आया होता। मैं खुद जाकर दिशा को बड्डे विश कर पाता। खैर सुबह की तैयारी करनी होगी। कपड़े भी ठीक नहीं हैं।
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अगले दिन दिवाकर समय से पहले ही ऑफिस पहुंच जाता है। एक घण्टे इंतज़ार के बाद एच आर आती हैं। ढेर सारे कागज़ों पर उसके साइन लिए जाते हैं। आखिरकार जॉइनिंग हो जाती है।
इन सब कामों में तीन बज जाते हैं।

दिवाकर सोचने लगता है... दिशा क्या सोच रही होगी। मैंने उसे फ़ोन भी नहीं किया। उसका मूड खराब होगा। कोई बात नहीं उसे कविता सुनाकर मना लूंगा। दिवाकर को अपनी कविता पर पता नहीं क्यों पर बहुत भरोसा था।

दिवाकर ऑफिस से छूटकर सीधे एक पार्क में जाकर बैठ जाता है। उसके हाथ में जॉइनिंग लेटर है। वो दिशा को फ़ोन मिलाता है। फ़ोन नहीं मिलता।
वो बार- बार फ़ोन मिलाता है... फ़ोन नहीं मिलता। वो परेशान होने लगता है। उसके पास दिशा का कोई दूसरा नंबर नहीं है। उसकी दोस्त का भी नहीं। वो किसे फ़ोन करे।
दिवाकर ने सुबह से कुछ नहीं खाया है। वो बस फ़ोन किए जा रहा है। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा। अचानक वो उठ कर भागने लगता है।
भागकर वो मार्केट पहुंच जाता है। एक बड़े शोरूम में जाकर दिशा के लिए टॉप खरीदता है। नीले रंग का। उसके पास पैसे नहीं है इस टॉप के लिए। उसे पूरा महीना निकालना है अभी। लेकिन उसे टॉप खरीदना ही होगा।

वो एक चिट्ठी लिखता है... उसमें सबकुछ लिख डालता है। अपनी पुरानी जॉब छोड़ने की माफ़ी, नयी जॉब मिलने की कहानी... उसकी सैलरी। मुम्बई में उसका पता। शादी का भी ज़िक्र करता है... पापा से मिलवाने की बात लिखता है।
टॉप के साथ ये चिट्ठी कोरियर कर देता है।
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अगले दिन से वो ऑफिस जाने लगता है। उसे इंतज़ार है कि कब दिशा उसे फ़ोन करेगी और कहेगी तुम्हारी पसंद बहुत अच्छी है।
मगर फ़ोन नहीं आता।
नयी जॉब में छुट्टी नहीं ले सकता। ये जॉब बहुत अच्छी है.... यहाँ उसे स्वतंत्र होकर लिखने को मिलता है। उसका मनपसंद काम। वो ये सब दिशा को बताना चाहता है। वो कहना चाहता है कि अब वो अपने भईया से पैसे कभी नहीं मंगाएगा।
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दो महीने बीत गए। इन दो महीनों में ऐसा एक दिन भी नहीं गया जब दिवाकर ने दिशा का नम्बर न मिलाया हो।
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फरवरी की एक दोपहर में दिवाकर किसी पार्क में बैठा कविता लिख रहा है...
उससे कविता लिखी नहीं जा रही।
हल्की सर्दी की इस दोपहर में धूप अच्छी लगती है... दिवाकर को नींद आ रही है। वो अपने किसी एहसास को शब्दों में ढाल नहीं पा रहा।
किसी शब्द में इतनी गहराई नहीं है जो दिवाकर के जज़्बातों को खुद में समेट सके।
हर दो या तीन लाइन के बाद दिवाकर दूसरी कविता लिखने लगता है। कोई कविता पूरी नहीं हो पा रही... क्यों वो लिख नहीं पा रहा...
क्या एड लिखते-लिखते कविता लिखने की कला वो भूल गया है...
उसके दिमाग में दिशा के शब्द गूंजते हैं... कैसे सोच लेते हो तुम ये सब?
फिर अपना ही जवाब सुनाई देता है... प्रेरणा।
वो प्रेरणा खो गयी है... अब मैं कभी कविता नहीं लिख सकूंगा।
नहीं मेरी प्रेरणा नहीं खो सकती... अचानक दिवाकर उठ खड़ा होता है।
दिवाकर ने हर छोटे-बड़े फैसले हड़बड़ाहट में किए हैं।
वो तेज़ी से कैफ़े की तरफ बढ़ता है। स्मार्ट फ़ोन होने के बाद भी उसने अब तक ऑनलाइन ट्रांजेक्शन करना नहीं सीखा। न ही कोई ऐप डाउनलोड की है। टेक्नोलॉजी से वो कभी दोस्ती नहीं कर पाया। दिशा हर बार उससे कहती कि तुम्हारे फ़ोन का होना न होना बराबर है। आज सचमुच उसे ऐसा ही लग रहा था।
जो फ़ोन दिशा से उसकी बात न करा सके उसका होना न होना बराबर ही है।

कैफे में उसने टिकट देखने को कहा। अगले महीने की तीन तारीख का टिकट मिल रहा था। उसने बिना ऑफिस में पूछे, बिना छुट्टी की चिंता किए... टिकट करा लिया। दो दिन बाद का लौटने का टिकट भी मिल गया।

अब दिवाकर को ज़रा सुकून मिला। उसने फिर दिशा को फ़ोन मिलाया लेकिन हमेशा की तरह उसके फ़ोन का होना न होना बराबर ही निकला।
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तीन मार्च-
दिवाकर ट्रेन में बैठा सोच रहा था।
दिशा से माफ़ी मांग लूंगा... वो बहुत नाराज होगी। उसके पापा को बताऊंगा अपनी सैलरी। इतनी सैलरी तो काफी होगी दामाद बनने के लिए। वो मना नहीं कर सकेंगे। अब कोई वजह भी तो नहीं है मना करने की।
दिवाकर का चोर मन उसे कुछ और सोचने को कह रहा था लेकिन वो उसे डपट देता... नहीं- नहीं ऐसा कुछ नहीं हुआ होगा। मुझे मेरी प्रेरणा ज़रूर मिल जायेगी।

हम सब के पास दो मन होते हैं... एक मन अच्छा-अच्छा सोचने को कहता है। दूसरे मन में चोर रहता है। चोर मन कई बार प्रैक्टिकल हो जाता है।
सही-गलत कुछ नहीं होता इनमें।

ट्रेन भागी जा रही है.... दिवाकर लगातार सोच रहा है। रात में बर्थ पर बार-बार करवट ले रहा है। उसे नींद नहीं आ रही। कम्बल ओढ़े होने के बाद भी उसे ठण्ड लग रही है... जैसे बुखार चढ़ने वाला हो। वो दिशा के पापा के साथ होने वाली अपनी बातचीत के संवाद लिख रहा है दिमाग में ही। उसे कब नींद आ गयी पता नहीं चला।

कई महीनों बाद भी दिशा का शहर बिलकुल वैसा ही है। दिशा भी वैसी ही होगी.... स्टेशन से बाहर आकर दिवाकर ने सोचा।

उसे समझ नहीं आ रहा था सबसे पहले कहां जाए। उसने सोचा पार्क की उसी बेंच पर जाकर बैठ जाए... दिशा आ जाएगी। लेकिन अगले ही पल वो एक होटल की तरफ बढ़ने लगा।

होटल में दो दिन के लिए एक कमरा बुक किया उसने। नहाकर तैयार हुआ और वो सारे तोहफे एक बैग में रखे जो वो दिशा के लिए लाया था।

वो सीधे दिशा के घर जाना चाहता था लेकिन ये ठीक नहीं लगा। उसने सोचा दिशा ऑफिस में होगी। अभी बहुत सुबह है वो ऑफिस 10 बजे पहुंचती है।
उसने ऑफिस का ही ऑटो कर लिया। उसके चेहरे पर मुस्कराहट आने लगी लेकिन तभी उसने पता नहीं क्या सोचकर एकदम गंभीर चेहरा बना लिया। जैसे उसे कोई देख रहा हो।
सारे रास्ते उसके पहचाने हुए थे फिर भी वो रास्ते का हर बोर्ड पढ़ लेना चाहता था।
दिशा का ऑफिस आ गया।
ऑटो वाले को पैसे देते वक़्त भी उसकी निगाहें ऑफिस के गेट पर थी।
अभी दिशा के आने में एक घंटे से भी ज़्यादा समय था।
उसने सोचा गॉर्ड से दिशा के बारे में पूछे मगर वो खुद को क्या बताएगा... अगर गॉर्ड ने पूछ लिया कि आप कौन तो...?
वो टहलने लगा। आधे घंटे गुज़र गए। उसे अजीब सी गुदगुदी हो रही थी... कभी ख़ुशी हो रही थी कभी रोना आ रहा था।
10 बज गए... दिवाकर हर ऑटो को घूर रहा था। इस ऑटो में दिशा ही होगी। नहीं है... इसके पीछे तो होगी ही।
कहीं उसने गाड़ी तो नहीं ले ली?
साढ़े दस बज गए हैं। इतनी देर तो वो नहीं करती। टाइम से आना उसे अच्छा लगता है। गार्ड से पूछ लेता हूं।
इस ऑटो में हो सकती है...
10:45... उसके हाथों में पसीना आने लगा।
दिवाकर गार्ड की तरफ दौड़ा।
गार्ड उसे बहुत देर से देख रहा था।
दिवाकर- भाई साहब...
गार्ड- हां सर कहिए। किससे मिलना है आपको?
दिवाकर- आप दिशा को जानते हैं? इसी दफ्तर में काम करती हैं।
गार्ड- दिशा मैडम।
गार्ड के चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है। जैसे किसी अपने ख़ास का नाम बहुत दिनों बाद सुनने पर आती है।
काम करती हैं नहीं सर। करती थीं। अब तो उन्होंने छोड़ दिया न। शादी हो गयी न उनकी।
दिवाकर को जैसे कुछ सुनाई न दिया हो।
दिवाकर- जी? क्या कह रहे हैं आप? दिशा जो अकाउंट डिपार्टमेंट में थीं। आप जानते हैं न उन्हें?
गार्ड- अरे हां सर। दिशा मैडम को कैसे भूल सकता हूं। उन्होंने बुलाया था मुझे शादी पर। कौन बुलाता है गार्ड को बताइए?
दिवाकर को सिर्फ गार्ड के होंठ हिलते हुए दिखाई दे रहे थे। उसके कदम पीछे हटने लगे। गार्ड दिशा की तारीफ़ करता जा रहा था। उसने पूछा सर आपको नहीं पता चला क्या? आप दोस्त हैं उनके?
दिवाकर मुड़ गया बिना सुने। उसने धीरे से कहा, नहीं कुछ नहीं। शायद गार्ड को सुनाई भी नहीं दिया।

वो चलने लगा। उसके हाथों के पैकेट अचानक बहुत भारी हो गए थे। वो उन्हें वहीं कहीं रख देना चाहता था।

अचानक वो फिर मुड़ा। गार्ड के पास पहुंचा। उसने पूछा आप तरन्नुम को जानते हैं?
उसकी आवाज़ इतनी धीमी थी कि गार्ड सुन नहीं पाया।
उसने पूछा, जी?
दिवाकर- तरन्नुम, दिशा की दोस्त। आप जानते हैं उन्हें?
गार्ड- हां वो मैडम आती थीं दिशा मैडम से मिलने। पर अब नहीं आतीं।
दिवाकर- उनका नंबर?
दिवाकर को पता था गार्ड के पास तरन्नुम का नंबर नहीं होगा। फिर भी वो पूछ रहा था।

गार्ड- नहीं सर, लेकिन आप अंदर जाकर साहिल सर से पूछ लीजिए। अकाउंट डिपार्टमेंट में ही हैं। उनके पास हो सकता है।
दिवाकर अंदर जाने लगा।

दिवाकर अकाउंट डिपार्टमेंट में हर कुर्सी को ऐसे घूर रहा था जैसे कहीं दिशा बैठी होगी। उसके दिमाग में कुछ नहीं आ रहा था। कोई बात नहीं। सन्नाटा था बिलकुल। उसे नहीं पता था वो तरन्नुम का नंबर लेकर क्या करेगा।
उसने किसी से पूछा- साहिल जी कहां मिलेंगे?
दिवाकर- साहिल?
साहिल- हां, मैं साहिल। बताइए?
दिवाकर- मैं दिवाकर। दिशा का दोस्त।
साहिल- ओह। हाय दिवाकर। आप मुम्बई से कब आए। बैठिए न।
साहिल थोड़ा हड़बड़ा गया था। उसकी हड़बड़ाहट से समझ आ रहा था कि वो दिशा और दिवाकर की दोस्ती को जानता है।
दिवाकर बैठ गया और साहिल को देखे जा रहा था जैसे उसने कोई गलती की हो।
साहिल- क्या लेंगे आप दिवाकर?
दिवाकर- नहीं कुछ नहीं। असल में दिशा का नंबर नहीं लग रहा। आपके पास तरन्नुम का नंबर होगा क्या?
साहिल- मेरे पास दिशा का नया नंबर है। तरन्नुम का भी है। आप चाय लेंगे?
दिवाकर- तरन्नुम का नंबर दे सकेंगे आप?
साहिल- जी। नोट कर लीजिए। 9839....
आप चाय पी लीजिये।
दिवाकर- नहीं। थैंक्यू। बस एक गिलास पानी।
साहिल ने पानी दिया।
साहिल बहुत कुछ कहना चाह रहा था पर उसने कुछ नहीं कहा।
दिवाकर पानी पीकर खड़ा हो गया।
थैंक्स साहिल जी।
साहिल ने मुस्करा दिया।
दिवाकर तेज़ क़दमों से बाहर आया। उसने गार्ड को शुक्रिया कहा और बिना उसका जवाब सुने वो चलने लगा।
सामने ऑटो थी। उसने होटल का पता बताया और बैठ गया।
होटल के सामने ऑटो रुकी। उसने उतर कर पैसे दिए और सीधे अपने रूम में चला गया। उसे अपना हाथ बहुत खाली लगा। उसने महसूस किया कि उसके हाथ में जो पैकेट थे वो अब नहीं है। उसने सोचा कि भाग कर ऑटो को ढूंढे लेकिन अगले ही पल वो बेड पर बैठ गया। उसे याद भी नहीं कि वो तोहफे ऑफिस में छूटे या ऑटो में। वो कुछ सोचना नहीं चाह रहा था।
उसने मोबाइल में तरन्नुम का नंबर देखा लेकिन मिलाने का मन नहीं हुआ। उसके सामने आइना था। उसकी नज़र खुद पर पड़ी। उसने नज़रे हटा ली। उसका चेहरा रोता हुआ दिख रहा था। आज से पहले उसे याद नहीं वो कब रोया था। हां शायद इस शहर से अलग होते समय।
उसने अपनी शर्ट उतार कर फेंक दी। नीले रंग की शर्ट।
उसके मुंह से निकला- अब कभी नहीं पहनूंगा। फिर वो चिल्लाया... और फूट-फूट कर रोने लगा। वो इसी वक़्त कहीं अदृश्य हो जाना चाहता था। वो जितना रो रहा था उतना ही और रोना चाहता था। उसे लग रहा था अब वो कभी चुप नहीं हो पाएगा। रोते-रोते वो कब सो गया उसे पता नहीं चला। उठा तो शाम के छह बज चुके थे। उसने सुबह से कुछ नहीं खाया था। सामने मेन्यू रखा था।
चाय, कॉफी, लेमन सोडा, कटलेट, बर्गर, चाउमिन... चाउमिन।
उसने कहा चाउमिन।
फिर वो मेन्यू में मंचूरियन ढूंढने लगा।
हां मंचूरियन।
उसने फ़ोन लगाया- एक चाउमिन और मंचूरियन।
रूम में दोनों चीज़ें आ गयी।
वो जल्दी-जल्दी खाने लगा। उसकी आँखों से अब भी आंसू बह रहे थे।
वो इतनी जल्दी खा रहा था कि उसके बिस्तर पर चाउमिन और मंचूरियन बिखर गया था।
उसने अपनी नीली शर्ट उठाई और उससे अपना मुंह रगड़ लिया। फिर उसी शर्ट से बिस्तर साफ़ करने लगा। रगड़ने से उसका मुंह जलने लगा था। उसने पानी पिया।
फिर फ़ोन उठाया और तरन्नुम का नंबर मिला दिया।
दिवाकर- हेलो, तरन्नुम बोल रही हैं?
तरन्नुम- हां आप कौन?
दिवाकर- मैं दिवाकर बोल रहा हूं। दिशा...
तरन्नुम- हां, हां दिवाकर जी। कैसे हैं आप?
दिवाकर- मैं आपके शहर आया हूं। क्या हम कुछ देर के लिए मिल सकते हैं?
तरन्नुम कुछ देर के लिए शांत हो जाती है। फिर कहती हैं- जी बताइए कब और कहां मिलना है। पार्क में...
दिवाकर- नहीं। पार्क में नहीं। किसी रेस्टोरेंट में मिल लेंगे। दोपहर में एक से दो के बीच। मैं कल बताता हूं आपको। ठीक है न?
तरन्नुम- जी।

अगले दिन दिवाकर तरन्नुम से एक रेस्टोरेंट में मिलता है। दोनों बहुत देर तक शांत रहते हैं। फिर इधर-उधर की बातें करते हैं। अचानक दिवाकर सवाल कर बैठता है, दिशा, दिशा की शादी कब हुई?
तरन्नुम-27 जनवरी
दिवाकर ऐसे सवाल कर रहा था जैसे इंटरव्यू ले रहा हो।
दिवाकर- अभी कहां है वो?
तरन्नुम- पुणे
दिवाकर-वो खुश थी इस शादी से?
तरन्नुम-उसे होना पड़ा।
दिवाकर-तो क्या जबरदस्ती...
तरन्नुम- नहीं, वो और इंतज़ार नहीं करना चाहती थी। उसकी उम्मीद टूट गयी थी आपसे।
दिवाकर-कब तय हुई थी बात?
तरन्नुम- उसकी बड्डे के बाद।
दिवाकर जैसे चिल्ला पड़ा हो- मगर तब तक तो मेरी जॉब लग गयी थी, मैं उसे फ़ोन लगाता रहा, उसका फ़ोन ही नहीं लग रहा था। उसे एक बार बात तो करनी चाहिए थी।
तरन्नुम- वो परेशान थी, घरवालों की तरफ से प्रेशर था। उसने आपसे बात करने की कोशिश की थी पर पता नहीं फिर क्या हुआ।
दिवाकर खड़ा हो जाता है। ठीक है मैं चलता हूं।
तरन्नुम चुप रहती है, दिवाकर जाने लगता है।
तरन्नुम पीछे से आवाज़ लगाती है
.. दिवाकर।
दिवाकर मुड़ता है।
उसने आपको एक कोरियर भी भेजा था, आपका जवाब भी नहीं आया... उसके बाद ही उसने शादी के लिए हां कर दी।
दिवाकर- मुझे कोई कोरियर नहीं मिला।
दिवाकर चला गया।
कल सुबह की ट्रेन पकड़नी है दिवाकर को। उसका दिमाग नहीं चल रहा। वो अपने किसी दोस्त से नहीं मिला। अब वो रो नहीं रहा। न ही उसे गुस्सा आ रहा है।
जब कोई रिश्ता पूरा हो जाता है तो एहसासों का खालीपन हमें घेर लेता है। हमारे अंदर कुछ नहीं बचता। न प्यार, न गुस्सा, न दुःख। कुछ समय के लिए हम खोखले से हो जाते हैं और यही समय हमें स्थायी लगने लगता है।
दिवाकर मुम्बई पहुंचकर काम पर लौट जाता है। वो अब एक दिन में कई एड लिखने लगा है। उसका रिपोर्टिंग मेनेजर काफी खुश रहता है उससे।
छह महीने के बाद उसका प्रमोशन हो गया। वो कभी-कभी ड्रिंक कर लेता है। खासकर पार्टी में। पहले वो बिलकुल ही मना कर देता था। कई दोस्त नाराज़ भी हो जाते थे।
देर तक ऑफिस में ही रहता है। छुट्टी नहीं लेता। फ्रेंच कट दाढ़ी बढ़ा ली है। उसका बॉस अब उसका दोस्त हो गया है।
हर पार्टी में उससे कविता सुनाने को कहा जाता है और वो कोई पुरानी कविता सुनाता है। नई कविता उसने नहीं लिखी है।
उसकी सैलरी काफी हो गयी है। उसके भाई शादी के लिए कई रिश्ते बता चुके हैं पर उसने शादी से इनकार कर दिया।
उसने मुम्बई में ही एक छोटा सा फ्लैट ले लिया है। एक आंटी आती हैं खाना बनाने।
उसके रूम में कई अवार्ड जुट गए हैं। लगभग 1 साल से उसने कोई छुट्टी नहीं ली है। वो घर भी नहीं जाता पर वो उदास नहीं है। कई लोगों से मिलता है। हंसता है, पार्टी करता है। जैसे उसने कोई नया खोल पहन लिया हो। वो अपने किसी पुराने परिचित से मिलना नहीं चाहता। नए दोस्तों में खोया रहता है।
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तीन महीने बाद।
दिवाकर के बॉस उसे बुलाते हैं।
बॉस- दिवाकर तुम्हें पुणे जाना होगा। हमारी कंपनी पुणे की स्टारडम फर्म के साथ काम करने वाली है। उसके सीईओ मेरे दोस्त हैं, मिस्टर समर्थ।
उन्होंने कंपनी की तरक्की और अपनी वाइफ के बड्डे पर पार्टी रखी है। मुझे जाना था लेकिन यहां कुछ ज़रूरी मीटिंग है।
दिवाकर- कब जाना होगा सर?
बॉस-3 को पार्टी है तुम जब चाहो निकल जाओ। और हां घूमने के लिए छुट्टी भी ले लो। कबसे काम किये जा रहे हो। घूमोगे नहीं तो तुम्हारी क्रिएटिविटी पर असर पड़ेगा यार।
दिवाकर- जी सर।
दिवाकर केबिन से बाहर आता है। कैलेंडर देखता है छुट्टी के लिए।
3 को पहुंचना है तो 2 को निकल जाऊंगा और 5 तक वापस आ जाता हूँ।
मेल करने के लिए वो डेट लिखता है।
3 दिसम्बर....
वो मेल कर देता है। एचआर से टिकट करा दी जाती है। होटल बुक हो गये।
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तीन दिसम्बर, पुणे

दिवाकर बुके लेकर पार्टी में पहुंचता है। काफी लोग आये हुए हैं। एडवरटाइजिंग जगत के बड़े-बड़े नाम... लगभग हर हाथ में ग्लास है। कई लोग ग्रुप में खड़े हैं। दिवाकर के भी कई जानने वाले हैं। वो सबसे मिल रहा है। उसका मुम्बई का एक पुराना कलीग भी मिलता है।
अरे दिवाकर आप मिस्टर समर्थ से मिले?
दिवाकर- नहीं बस उन्हें ही ढूंढ रहा हूँ।
आइये आपको मिलाते हैं।
समर्थ जी ये हैं मिस्टर दिवाकर, रिदम से।
समर्थ- ओहो, अरे मिस्टर दिवाकर वेलकम। आपके बॉस आपकी बहुत तारीफ करते हैं। गुड टू सी यू हेयर।
दिवाकर- थैंक्यू। दिस इज़ फॉर यू।
दिवाकर बुके आगे कर देता है।
समर्थ- ओह... नो। आई एम नॉट द स्टार ऑफ टुडे। शी वाज़ देयर। कम, आई इंटरड्यूज यू।
डार्लिंग.... ही इज़ दिवाकर फ्रॉम मुम्बई।
एंड दिवाकर शी इज़ माय ब्यूटीफुल वाइफ दिशा।
कभी कान के पास ज़ोर की चोट लग जाए तो सीटी सी बजती है। दिवाकर को वो सीटी सुनाई दे रही थी।
दिवाकर हिल भी नहीं पा रहा। समर्थ बोले जा रहे थे। दिशा और दिवाकर एकटक एक दूसरे को घूर रहे हैं। इससे पहले दिशा की आंखों से आंसू गिरे वो हंस देती है। और हेलो कहकर हाथ आगे बढ़ा देती है।
दिवाकर अब भी जो हो रहा है उसके होने पर भरोसा नहीं कर पा रहा। असल में उसमें कुछ हलचल ही नहीं है। जैसे साँसें भी रुक गई हों।
समर्थ दिवाकर की पीठ पर हाथ मारते हैं।
वेयर आर यू मिस्टर। इज़ एवरीथिंग ऑलराइट?
दिवाकर जैसे नींद से जागा।
यस, यस। उसने बुके पकड़ा दिया और धीरे से कहा हैप्पी बड्डे।
दिशा ने बुके ले लिया।
समर्थ को किसी ने आवाज़ दी।
वो दिवाकर से एन्जॉय कहकर चला गया।
दिशा और दिवाकर वहीं खड़े थे।
उनकी आँखें एक दूसरे से बात कर रही थीं।
दिशा की आंखें-तुमने दाढ़ी क्यों बढ़ा ली, अच्छी नहीं लगती।
दिवाकर की आंखें- क्या करूं अच्छा लगकर।
दिशा की आँखें-मैं उतनी भी बुरी नहीं हूं जितना तुम समझ रहे हो।
दिवाकर की आंखें- मैं कभी बुरा समझ ही नहीं सकता।
दिशा को कोई बुलाता है। वो सुन नहीं पाती।दिवाकर कहता है आपको कोई बुला रहा है।
दिशा को 'आपको' बुरा लगता है।
दिशा- पेन-पेपर है?
दिवाकर-जेब से निकालता है।
दिशा उसमें नम्बर लिखती है और चली जाती है।
दिवाकर का मन नहीं लगता वो पार्टी से चला जाता है।
रूम में पंहुचकर वो नम्बर देखता रहता है।
अगले दिन सुबह काफी सोचने के बाद वो फ़ोन लगाता है।
दिशा फ़ोन उठाते ही बोलती है, कितनी देर लगा दी। मैं कबसे इंतज़ार कर रही थी। पुणे के किसी बीच पर मिलने को बुलाती है और फ़ोन रख देती है।
दिवाकर कल रात को याद करता है। दिशा भी कितनी बदल गयी है। कितनी गंभीर हो गयी है। उसे तो साड़ी पहनना नहीं पसंद था। वो हमेशा ड्रेस पहनना चाहती थी। और वो ग्रे कलर। इतने बुझे रंग तो उसे नहीं चाहिए थे। क्या वो खुश नहीं है? क्या वो लौट आएगी? नहीं ये सब सोचना ठीक नहीं।
वो तैयार होकर मिलने निकलता है।
दिशा पहले से ही वहां बैठी है।
दिशा- कैसे हो दिवा?
दिवा सुनकर दिवाकर रुक जाता है। फिर कहता है ठीक हूं।
दिशा-तुमने दाढ़ी क्यों बढ़ा ली?
दिवाकर-क्यों अच्छी नहीं लगती?
दिशा- नहीं ठीक है।
दिशा-मैं बहुत बुरी हूँ न?
दिवाकर-नहीं।
दिशा-तुमने मुम्बई जब घर बदला तो...
दिवाकर-दिशा प्लीज़। मैं वो सब बात दोहराना नहीं चाहता।
दोनों चुप हो जाते हैं
दिवाकर-तुम खुश हो।
दिशा मुस्करा कर कहती है समर्थ मुझे बहुत प्यार करते हैं, लेकिन कभी कविता नहीं लिखते। वो मेरे लिए महंगे तोहफे लाते हैं लेकिन मेरा घंटों इंतजार नहीं करते। उन्होंने मेरे लिए कई नौकर रखे हैं मुझे नौकरी नहीं करने देते।
दिवाकर-तुम उन्हें प्यार करती हो?
दिशा-अमूमन हर पत्नी अपने पति को प्यार करती है।
दिवाकर-तुम अगर एक बार मुझसे बात कर लेती तो...
दिशा- वही तो मैं तुम्हें बता रही थी। मेरा फ़ोन गुम गया था। नम्बर याद नहीं था। तुम किसी सोशल साइट पर नहीं थे। मैंने तुम्हारे पते पर कोरियर भेजा तुम्हारा जवाब नहीं आया। कुछ दिन बाद वो कोरियर वापस आ गया क्योंकि तुमने घर बदल दिया था।
दिवाकर हँसता है- ये तो फ़िल्मी कहानी हो गयी। आज के टाइम पर तुम एक नंबर नहीं ढूंढ सकीं।
दिशा-मुझे पता है तुम विश्वास नहीं करोगे। खैर ये
वो कोरियर है जो मैंने तुम्हें भेजा था। शादी के कुछ दिन पहले वापस आया। ये तुम रख लो।
दिवाकर-क्या है इसमें? मैं क्या करुंगा इसका।
दिशा-मैंने पहले ही समर्थ को तुम्हारे बारे में बताया था। कल रात नाम भी पता चल गया और पहचान भी हो गयी।
दिवाकर-क्या?
दिशा-हां, एक धोखा देने का मलाल लेकर जी रही हूं, दूसरा नहीं...
दिशा की आंखें नम हो जाती है। वो पैकेट छोड़ कर चली जाती है।
दिवाकर बहुत देर तक बैठा रहता है।
फिर पैकेट उठाता है।
उसमें एक लैटर रखा होता है।
डिअर दिवा,
तुम कहां चले गए हो। मेरा फ़ोन खो गया है, नंबर नहीं है तुम्हारा। जैसे ही लेटर मिले मेरे नए नम्बर 98989... पर कॉल करना। पुराना नंबर चालू नहीं हो सका। तुम्हारी जॉब लगी हो या नहीं एक बार यहां आ जाओ। मैं तुम्हें पापा से मिलवाना चाहती हूं। क्योंकि अब वो शादी के लिए ज़्यादा इंतज़ार नहीं कर सकेंगे। मैं तुमसे ही शादी करना चाहती हूँ क्योंकि मैं तुमसे प्यार करती हूँ। तुम्हारी कविताएं लौटा रही हूँ जिससे तुम इसे अपने साथ लेकर आओ। ये तुम्हारे साथ ही पूरी लगती हैं।
तुम्हें खो देने का डर लगने लगा है। अच्छा होता तुम्हें जाने न देती। अगर तुम न लौटे तो मुझे शादी करनी होगी। मैं पापा-मम्मी का दिल नहीं दुखा सकती। आई होप यू अंडरस्टैंड मी। प्लीज़ लौट आओ। आई एम वेटिंग फॉर यू।
विद लव,
दिशा।

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