Aagaaz.... nayi kalam se...

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Kya likhun...???

Friday, March 17, 2017

अकेली रातों में...

अकेली रातों में...
कंधे से हटा कम्बल खुद ऊपर करना होता है
उम्र से बड़े होने के बाद अभी खुद में बड़ा होना बचा है
अकेली रातों में...
परछाई को भूत नहीं परछाई ही खुद समझ लेना होता है
सपनों से डर कर हक़ीक़त में खुद को सुलाना होता है
न ओढ़ने की ज़िद भी और आधा ओढ़ने का फैसला भी खुद का होता है
अकेली रातों में...
सुबह उठने की दलीलें, कहीं जाने की तारीखें खुद ही तय करनी होती हैं
अलार्म का टाइम सेट करके खुद ही उसे बंद करना होता है...
अकेली रातों में.....

-शुभी चंचल


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