यार सैलरी इतनी कम है कि महीने का खर्च भी पूरा नहीं पड़ता, सेविंग तो दूर की बात है।
रोज़ ऑफिस जाते समय घंटों जाम में फंसते हैं, दिमाग का दही हो जाता है।
घर में बैठे-बैठे बोर हो चुके हैं , ज़िन्दगी में कोई चार्म नहीं बचा।
रोज़ का वही काम , खाना बनाओ-खाओ, कपड़े बर्तन... बस। ये भी कोई ज़िन्दगी है।
ये साली ज़िन्दगी तो घर का दाल-चावल पूरा करने में ही बीत जाएगी।
और वगैरह-वगैरह।
ज़िन्दगी की ऐसी ही शिकायतें सुनने को मिलती है आसपास। कभी सुना है किसी को कहते कि मैं बहुत खुश हूं अपनी ज़िन्दगी में या मेरे पास सब कुछ है।
किसी के पास सब कुछ हो भी नहीं सकता। अगर हो जाए तो ज़िन्दगी पूरी नहीं हो जाएगी। अधूरेपन को पूरा करने की तलाश ही तो है ज़िन्दगी।
एक दादी मिली थी कल ऑफिस जाते समय ऑटो में। उनके हाथों में खिलौने थे। ऐसे खिलौने जो शायद वो चलाना भी नहीं जानती होंगी। ले जा रही होंगी शायद अपने पोते-पोती या नातियों के लिए। बहुत पैसे नहीं थे उनके पास। उस उम्र की थीं जिस उम्र में अकेले नहीं निकलना चाहिए उन्हें। कैसे पसंद किए होंगे उन्होंने वो खिलौने। जब बच्चे खेलेंगे तो कितनी खुश होंगी वो। क्या ये ख़ुशी कम है?
हम हमेशा सोचते हैं हमारे पास क्या नहीं है... कभी नहीं सोचते क्या कुछ है...
पता है क्या है हमारे पास:
हमारे पास दो हाथ हैं, दो पैर हैं जो टूटे नहीं हैं।
हमारे पास दो आंखें, एक नाक, दो कान हैं जो अपना काम सही तरह से करते हैं।
हमारे पास दो किडनी है जो ख़राब नहीं है, फेफड़ा है जिसमें इन्फेक्शन नहीं है।
एक दिल है जिसमें कोई छेद नहीं है।
........
ये सब तब तक बहुत नॉर्मल लगता है जब तक इनमें कोई ख़राबी नहीं आती।
एक बार डॉक्टर के यहां चक्कर लगाना पड़ जाए तो ज़िन्दगी की बाकी कमियां याद नहीं रहतीं।
कुछ लोग इन सब के बाद भी खुश रहने की कोशिश करते हैं। मिलिए कभी अनाथाश्रम में रहने वाले बच्चों से जिनके पास न अपना घर है न रिश्ते। देखिए कभी उन्हें जो दो कदम बिना सहारे चल नहीं सकते। अपनी ज़िन्दगी रोशन लगेगी आपको।
कोशिश करिए कि खुश रहने के बहाने तलाशे जाएं न कि ज़िन्दगी की तकलीफों को याद कर करके फ्रस्टेट रहा जाए। आपके खुश रहने से आपके आसपास एक पॉजिटिव एनर्जी बनती है जिससे दूसरे लोग भी खुश रहते हैं। जब आपकी वजह से कोई और हंसता है तो बैंक अकाउंट में तो कोई तब्दीली नहीं आती हां सुकून ज़रूर मिलता है।
और खुश होना है?
किसी गरीब को 10 रुपये का भुट्टा दिलाइए और उसे खाते देखिए।
एक बच्चे को दो रुपये की टॉफी दिलाइए फिर उसका मुस्कराना देखिए।
किसी बुज़ुर्ग का सामान उठाकर उसके साथ 10-20 कदम चलकर देखिये।
ऑटो में गुमसुम बैठी औरत से बाहर पढ़ने-कमाई करने गए उसके बच्चों के बारे में पूछकर कर उसकी गर्व भरी बातें सुनिए।
किसी ख़ास के लिए कुछ ख़ास करिए और उसकी हंसी देखिए।
सबसे बड़ी बात इन सब कामों के लिए आपकी सैलरी का ज़्यादा होना ज़रूरी नहीं। लखपति होना ज़रूरी नहीं। ताकतवर, रौबदार होना भी ज़रूरी नहीं।
खुश रहना बहुत आसान काम है। शर्त सिर्फ इतनी है कि आप खुद खुश रहना चाहते हों। यकीन मानिए ज़िन्दगी बहुत छोटी है। कब, कौन, कहां, कैसे... साथ छोड़ जाए, नहीं पता। उदास रहने से आप न सिर्फ खुद को बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी उदासी देते हैं सौगात में। मुझे नहीं लगता आप ऐसा चाहते होंगे।
पुराना गाना है... इस दुनिया में जीना है तो सुन लो मेरी बात गम छोड़के मनाओ रंग-रेली...।
😊👍💐
खूब मुस्कराइए... दूसरों को मुस्कराहट दीजिये...।
रोज़ ऑफिस जाते समय घंटों जाम में फंसते हैं, दिमाग का दही हो जाता है।
घर में बैठे-बैठे बोर हो चुके हैं , ज़िन्दगी में कोई चार्म नहीं बचा।
रोज़ का वही काम , खाना बनाओ-खाओ, कपड़े बर्तन... बस। ये भी कोई ज़िन्दगी है।
ये साली ज़िन्दगी तो घर का दाल-चावल पूरा करने में ही बीत जाएगी।
और वगैरह-वगैरह।
ज़िन्दगी की ऐसी ही शिकायतें सुनने को मिलती है आसपास। कभी सुना है किसी को कहते कि मैं बहुत खुश हूं अपनी ज़िन्दगी में या मेरे पास सब कुछ है।
किसी के पास सब कुछ हो भी नहीं सकता। अगर हो जाए तो ज़िन्दगी पूरी नहीं हो जाएगी। अधूरेपन को पूरा करने की तलाश ही तो है ज़िन्दगी।
एक दादी मिली थी कल ऑफिस जाते समय ऑटो में। उनके हाथों में खिलौने थे। ऐसे खिलौने जो शायद वो चलाना भी नहीं जानती होंगी। ले जा रही होंगी शायद अपने पोते-पोती या नातियों के लिए। बहुत पैसे नहीं थे उनके पास। उस उम्र की थीं जिस उम्र में अकेले नहीं निकलना चाहिए उन्हें। कैसे पसंद किए होंगे उन्होंने वो खिलौने। जब बच्चे खेलेंगे तो कितनी खुश होंगी वो। क्या ये ख़ुशी कम है?
हम हमेशा सोचते हैं हमारे पास क्या नहीं है... कभी नहीं सोचते क्या कुछ है...
पता है क्या है हमारे पास:
हमारे पास दो हाथ हैं, दो पैर हैं जो टूटे नहीं हैं।
हमारे पास दो आंखें, एक नाक, दो कान हैं जो अपना काम सही तरह से करते हैं।
हमारे पास दो किडनी है जो ख़राब नहीं है, फेफड़ा है जिसमें इन्फेक्शन नहीं है।
एक दिल है जिसमें कोई छेद नहीं है।
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ये सब तब तक बहुत नॉर्मल लगता है जब तक इनमें कोई ख़राबी नहीं आती।
एक बार डॉक्टर के यहां चक्कर लगाना पड़ जाए तो ज़िन्दगी की बाकी कमियां याद नहीं रहतीं।
कुछ लोग इन सब के बाद भी खुश रहने की कोशिश करते हैं। मिलिए कभी अनाथाश्रम में रहने वाले बच्चों से जिनके पास न अपना घर है न रिश्ते। देखिए कभी उन्हें जो दो कदम बिना सहारे चल नहीं सकते। अपनी ज़िन्दगी रोशन लगेगी आपको।
कोशिश करिए कि खुश रहने के बहाने तलाशे जाएं न कि ज़िन्दगी की तकलीफों को याद कर करके फ्रस्टेट रहा जाए। आपके खुश रहने से आपके आसपास एक पॉजिटिव एनर्जी बनती है जिससे दूसरे लोग भी खुश रहते हैं। जब आपकी वजह से कोई और हंसता है तो बैंक अकाउंट में तो कोई तब्दीली नहीं आती हां सुकून ज़रूर मिलता है।
और खुश होना है?
किसी गरीब को 10 रुपये का भुट्टा दिलाइए और उसे खाते देखिए।
एक बच्चे को दो रुपये की टॉफी दिलाइए फिर उसका मुस्कराना देखिए।
किसी बुज़ुर्ग का सामान उठाकर उसके साथ 10-20 कदम चलकर देखिये।
ऑटो में गुमसुम बैठी औरत से बाहर पढ़ने-कमाई करने गए उसके बच्चों के बारे में पूछकर कर उसकी गर्व भरी बातें सुनिए।
किसी ख़ास के लिए कुछ ख़ास करिए और उसकी हंसी देखिए।
सबसे बड़ी बात इन सब कामों के लिए आपकी सैलरी का ज़्यादा होना ज़रूरी नहीं। लखपति होना ज़रूरी नहीं। ताकतवर, रौबदार होना भी ज़रूरी नहीं।
खुश रहना बहुत आसान काम है। शर्त सिर्फ इतनी है कि आप खुद खुश रहना चाहते हों। यकीन मानिए ज़िन्दगी बहुत छोटी है। कब, कौन, कहां, कैसे... साथ छोड़ जाए, नहीं पता। उदास रहने से आप न सिर्फ खुद को बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी उदासी देते हैं सौगात में। मुझे नहीं लगता आप ऐसा चाहते होंगे।
पुराना गाना है... इस दुनिया में जीना है तो सुन लो मेरी बात गम छोड़के मनाओ रंग-रेली...।
😊👍💐
खूब मुस्कराइए... दूसरों को मुस्कराहट दीजिये...।