हर लेख, हर कविता कुछ नई भावनाओं के साथ एक नई रचना का आग़ाज़ होती है, इसीलिए मेरे ब्लॉग का नाम आग़ाज... नई कलम से... है... अपने विचार बाँटना चाहती हूँ, आशा है आपको पसंद आएगा... आपकी राय का स्वागत है......धन्यवाद.....
Sunday, February 26, 2012
अधूरा सा कुछ...
अक्सर अधूरा लगता है मुझे सब कुछ,
ठहाकों की आवाज़ में एक ख़ामोशी रहती है,
अक्सर हंसी में मुझे आंसू दिखते है,
भीड़ में इक चेहरा रहता है सामने मेरे,
पूछता है सवाल मुझसे हर बार एक ही,
कैसे मुस्कुरा सकती हूँ मैं,
गुनगुना कैसे सकती हूँ सुरों को,
जब खुश नहीं वो, खामोश सी है,
चुप सी है इक ज़िन्दगी की हर सरगम जब,
गा सकती हूँ कैसे मैं गीत कोई,
मुझे गुनाह लगता है कभी हँसना भी,
मैं हो जाती हूँ अकेली भीड़ में भी,
नही ढूंढ पाती जब उस चेहरे के सवालों के जवाब,
अक्सर अधूरा लगता है मुझे सब कुछ...
-शुभी चंचल
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अच्छा लिखा है...
ReplyDeletegood one
ReplyDeleteठहाकों की आवाज़ में एक ख़ामोशी रहती है,
ReplyDelete......
अक्सर हंसी में मुझे आंसू दिखते है,
भीड़ में इक चेहरा रहता है सामने मेरे,
पूछता है सवाल मुझसे हर बार एक ही,
कैसे मुस्कुरा सकती हूँ मैं,
shubhi ji....mai to senti ho gaya yaar ...mujhe koi alfaaj ni mil rha h apne mn ke bhavo ko vyakt krne ke liye .... bhut umda ...keep it up...
thanks ashish... :-)
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