विभाजन की वो पीड़ा हम में से कोई समझ भी नहीं सकता क्यूंकि वो एक भयानक स्वपन से भी भयानक था... इसके बाद गांधी जी की हत्या का पूरा विवरण भी किताब से नज़रे हटने नहीं देता... इन सब के बाद ये बताना ज़रूरी है कि इस किताब को पढ़कर मेरे बहुत सारे भ्रम टूट गए.. सबसे खास बात ये कि जब ये किताब अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंची तो इस ख़ुशी के साथ कि हमने इसे पढ़ लिया है... एक अजीब सी बैचेनी हुई.. लगा कि हम एक दुनिया से बाहर आ रहें है... उसे और देखना चाहते है, वहां के लोगों से और जुड़ना चाहते है... लेकिन ऐसा हुआ नहीं... मेरी माने तो इस किताब का अगर पार्ट २ आ जाए तो हम उसे भी इतनी ही रोचकता से पढेंगें.... चलते- चलते मेरी अपने दोस्तों से यही गुज़ारिश है कि एक मर्तबा इसे ज़रूर पढ़ें... हमें पूरा विश्वास है कि ये किताब आपको भी उतनी ही अपनी लगेगी जितनी हमें लगी....
शुक्रिया...
-शुभी चंचल