आँख बंद करते ही एक ख़्याल मेरे मन को भेदता है,
एक हाथ, उसमें बन्दूक से निकली गोली,
मेरे किसी 'अपने' की तरफ बढ़ती है,
में आगे बढ़कर उस गोली को खुद में समेट लेती हूँ,
लाल रंग की फुहार से भीगकर,
डगमगा गई उसी जगह मैं,
आवाज़े सुनने में कम,
और नज़ारे फीके पड़ने लगे,
वो हाथ भी धुंधला जाता है,
मेरी आँखें मेरे 'अपने' पर है,
मगर वो अब भी अनजान है, मेरा 'अपना'
कि वो कितना 'अपना' है मेरे लिए,
आँख बंद करते ही एक ख़्याल मेरे मन को भेदता है।
--शुभी चंचल
wah shubhi wah..keep going..nd always keep dis spirit..
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