Aagaaz.... nayi kalam se...

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Kya likhun...???

Sunday, November 28, 2010

एक कसक....


खो के कभी हम पा न सके,
फिर भी तुझे हम भुला न सके,

दिन ढ़लता रहा,
तारीखे भी बदली,
ख़्वाबों में तुझे हम मनाते रहे,
पर अपनी दुनिया में तुझको हम बुला न सके,
फिर भी तुझे हम भुला न सके।

सोचा था हमराह नहीं,
हमदर्द ही मिलेगा,
ग़म इतना तेज़ था तेरे हिज्र का,
किसी महफ़िल में खुद को रुला न सके,
फिर भी तुझे हम भुला न सके।

तू दूर नहीं तू पास ही है,
मेरी यादों में, एहसासों में,
चाहा था बहुत कुछ कहना मगर,
तुझे उन एहसासों से मिला न सके,
फिर भी तुझे हम भुला न सके।

खो के कभी हम पा न सके,
फिर भी तुझे हम भुला न सके।


- शुभी चंचल