पसीने से भीगा हुआ चेहरा याद आता है,
रोटी को जिद से गोल करती उँगलियाँ,
छौंक के धुंए से छिड़ी हुई खांसी,
दाल में नमक के स्वाद की चिंता,
सर्दियों कि सुबह में माँ से लड़ता कोहरा याद आता है.
सुबह की दौड़ती भागती ज़िन्दगी,
छोटो की फरमाइशें, औरों की उम्मीद,
छोटे बड़े मोजों की तलाश,
बुखार में तपती जान पर दुआओं का पहरा याद आता है.
--शुभी चंचल
kabhi mata ji ko chod ke kuch aur soch lia kro....likhne ke lie
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