आने वाले तूफानों से अनजान,
फुदकती है वो घर के आँगन में,
हँसती है, हँसाती है,
गूंजती है उसकी आवाज़,
मोहल्ले की आखिरी गली तक,
तूफान से पहले की आंधी आती है जब,
सहम तो जाती है वो,
मगर फिर खुद ही संभल भी जाती है,
दूर कहीं उठ रही लहरों को भाप नहीं पाती,
सीख लेती है ज़िन्दगी के हुनर कई,
अपने हुनर का लोहा भी मनवाती है,
मगर तूफान जो आना था, रुकता नहीं,
आता है वो अपने पूरे आवेग से,
दुनिया भर का गुस्सा लिए,
वो डर जाती है, सिकुड़ने सी लगती है
उसकी आवाज़ और बाहें एक साथ,
उसे है प्यार अपने पंखों से,
खुले नीले आसमान से,
मगर वो घिर चुकी है ...
फुदकने, हँसने, हंसाने वाली चिड़िया,
हो जाती है गिद्धों का शिकार ...
-शुभी चंचल
फुदकती है वो घर के आँगन में,
हँसती है, हँसाती है,
गूंजती है उसकी आवाज़,
मोहल्ले की आखिरी गली तक,
तूफान से पहले की आंधी आती है जब,
सहम तो जाती है वो,
मगर फिर खुद ही संभल भी जाती है,
दूर कहीं उठ रही लहरों को भाप नहीं पाती,
सीख लेती है ज़िन्दगी के हुनर कई,
अपने हुनर का लोहा भी मनवाती है,
मगर तूफान जो आना था, रुकता नहीं,
आता है वो अपने पूरे आवेग से,
दुनिया भर का गुस्सा लिए,
वो डर जाती है, सिकुड़ने सी लगती है
उसकी आवाज़ और बाहें एक साथ,
उसे है प्यार अपने पंखों से,
खुले नीले आसमान से,
मगर वो घिर चुकी है ...
फुदकने, हँसने, हंसाने वाली चिड़िया,
हो जाती है गिद्धों का शिकार ...
-शुभी चंचल