Aagaaz.... nayi kalam se...

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Kya likhun...???

Friday, April 22, 2011

आर-पार...


ये कविता मेरी एक मित्र को समर्पित है..... जिनकी ज़िन्दगी में कुछ ऐसे मोड़ आये और उनकी बातों को सुनकर मुझे लगा कि वो कुछ ऐसा ही कहना चाह रही है.....

जला कर राख कर दो मेरी मोहब्बत को,
या और तेज़ हवाएं दे दो,
वरना धुंआ बढ़ता रहेगा,
कहानियां बदलती रहेगी,

कह दो तुम नहीं हो मेरे,
या खुद को मेरे नाम कर दो,
तुम आओ याद मुझको कभी,
या अपनी यादों में मेरा नाम दे दो,

कह दो भूल जाऊं तुम्हे,
या मिलने का पैगाम दे दो,
आसूं दे दो जुदाई का,
या मिलने की मुस्कान दे दो,

तोड़ दो हर ख्वाब हर उम्मीद मेरी,
या मेरा हर सपना आबाद कर दो,
लगता हो अगर नामुमकिन ये सब,
दे दो ज़हर बस ये काम कर दो.....

-शुभी चंचल