Aagaaz.... nayi kalam se...

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Kya likhun...???

Monday, March 21, 2011

हँसते- हँसते .....


हँसते- हँसते दिल ये मेरा ज़ोर से रोने लगता है,
पाया था जिसे अभी अभी वो यूँ-ही खोने लगता है।

वो
कौन सी लकीर है हाथों में,
वो कौन सा तारा नभ में है,
किस्मत हमसे या हम किस्मत से,
कभी भ्रम सा होने लगता है।

सही हर जगह सही नहीं,
और गलत कहीं पर सही भी है,
फिर सही है क्या और गलत है क्या,
मन सवाल को ढोने लगता है।

जो मिला था उसको खो ही दिया,
जो मिला नहीं वो सोच में है,
वो टूटा तो फिर जुड़ा नहीं,
मन स्वप्न संजोने लगता है.....

- शुभी चंचल

Sunday, March 13, 2011

क्यूँ.....?


कुछ सवाल है जो कई दिनों से मेरे मन में घूम रहे है.... जिनका हल मैं ढूढ़ नहीं पा रही हूँ... आज वो सवाल आप सब के साथ बाँटने जा रही हूँ... कि-
- एक तरफ १ बच्चा बड़े, महंगे स्कूल और ट्यूशन में पढ़ने जाता है और दूसरी तरफ किसी बच्चे को सरकारी स्कूल भी नहीं मिलता....क्यूँ?

- एक तरफ स्वर्गीय लोगों की जन्मतिथि पर लाखों- करोड़ों खर्च कर दिए जाते है तो दूसरी तरफ एक मासूम बच्चा अपना जन्मदिवस भी नहीं जानता....क्यूँ?

- एक तरफ एक इन्सान के पास कई मकान, होटल, जमीन जायदाद है तो दूसरी तरफ कुछ लोगों के पास घर के नाम पर फुटपाथ और छत के नाम पर आसमान के सिवा कुछ नहीं... क्यूँ?

-एक तरफ मंत्री के रिश्तेदारों को बिना किसी योग्यता के बड़े से बड़ा पद मिल जाता है तो दूसरी तरफ एक योग्य पात्र दर- दर भटकता है...क्यूँ?

- मुख्यमंत्री के निकलने के लिए ४ घंटे पहले से पूरा यातायात मार्ग बंद कर दिया जाता है भले ही उस रास्ते में अस्पताल जाने के इंतज़ार में कितने ही मरीज़ अपना दम तोड़ दे...क्यूँ?

- एक तरफ "कसाब" जैसे आतंकवादी को करोड़ों रूपए खर्च करके ऐसी जेल में रखा जाता है जिसमे बम का भी कोई असर न हो तो दूसरी तरफ देश के निर्दोष, करदाता नागरिक को ये विश्वास नहीं है की वो शाम को सुरक्षित घर लौटेगा या नहीं ....क्यूँ?

- भ्रष्टाचारी मंत्रियो की सुरक्षा के लिए उनकी गाड़ी के आगे पीछे कितनी और गाड़िया दोड़ती है और एक आम आदमी यूँ ही डरते हुए अपनी जिन्दगी काट देता है...क्यूँ?

- एक तरफ किसी नेता को एक छीक आ जाये तो उसके लिए एम्बुलेंस, आई सी यू सब तैयार हो जाते है तो दूसरी तरफ बलात्कार की शिकार एक निर्दोष लड़की चार दिन तक एक- एक साँस के लिए लड़ती -लड़ती मर जाती है लेकिन उसे ढंग से एक डॉक्टर देखता भी नहीं है....क्यूँ?

ऐसे न जाने कितने क्यूँ हमारे देश के मानचित्र पर गड़े हुए है... अगर इनमे से एक भी क्यूँ को हम हटा पाए तो शायद दुनिया में आना सफल हो जाये....

हम भारतवासी अपने पड़ोसी देशों को भला- बुरा कहते है उनसे लड़ने के लिए एक-जुट हो जाते है भारत के अन्दर छिपे दुश्मनों से कब लड़ेगे.... कब?

क्या आपके पास है जवाब?????


- शुभी चंचल

Tuesday, March 8, 2011

नारी दिवस पर..


दुनिया की खूबसूरती का हिस्सा है ये नारी,
फिर क्यूँ इस खूबसूरती को मिटाना है जारी,

हक नहीं कोख में आने का,
माँ का स्पर्श पाने का,
चाहते है कमाऊ पूत,
और बहाना है वंश चलाने का,

दुनिया की खूबसूरती का हिस्सा है ये नारी,
फिर क्यूँ इस खूबसूरती को मिटाना है जारी.......

- शुभी चंचल

Saturday, March 5, 2011

जवाब


अगर हम न होते तो क्या होता.....? -
हम न होते तो जो लोग आज हमसे खफा है या हमारी वजह से दुखी है वो दुखी न होते.....
और जो हमसे खुश है, वो खुश भी न होते....
जीवन के इतने सारे रंगों से हम अनजान रह जाते.....
कभी कभी सुकून देने वाले आसुओं से न मिल पाते....
बचपन की छोटी छोटी खुशियों से भी महरूम रहते....
और आज सबको इस विषय में लिखते देखकर मेरा मन न होता लिखने को...
- शुभी चंचल

Tuesday, March 1, 2011

बदलते रिश्ते




रिश्ते............इन रिश्तों के बंधन से कोई नहीं बच पाता या कह सकते है इस रेशम के जाल से कोई निकलना ही नहीं चाहता। दुनिया में आते ही तमाम रिश्ते घेर लेते है। बड़े होते-होते कई रिश्ते जुड़ते चले जाते है, कई बिछड़ते भी है। लेकिन "बदलाव" हर रिश्ते में आते ही है, कभी अच्छे और कभी बुरे भी..........ये बदलाव हम खुद नहीं लाते और कभी-कभी चाहते भी नहीं है पर अचानक हमें महसूस होता है कि ये रिश्ता बदल गया। फिर अगर बदलाव अच्छा है तो एक मुस्कुराहट से दिल तसल्ली करता है और अगर बुरा है तो एक दूसरे पर आरोप लगते है कि ”आप बदल गये”। असल में बदलते तो रिश्ते है......क्यूं ?
रिश्ते की भी कई नस्लें होती है। कुछ रिश्ते हमें दुनिया में आते ही विरासत में मिल जाते हैं, तो कुछ ज़िंदगी के सफर में....... इसी बीच बदलाव भी अपना खेल दिखाता रहता है। जब रिश्तों में बुरा बदलाव महसूस होता है तो अजीब सी हलचल महसूस होती है, दिल उस बदलाव को स्वीकार नहीं कर पाता......पर सच्चाई तो बदली नहीं जा सकती। अब ज़रा अपने आस-पास के बदलते रिश्ते पर नज़र डालिए..........अगर आप बुआ और मौसी के रिश्ते से इत्तेफ़ाक रखते हैं तो ज़रा सोचिए कभी आप की बुआ आपके पापा या चाचा के साथ वैसे ही खेला और झगड़ा करती होंगी जैसे कुछ दिन पहले या अब भी आप अपने भाई-बहनों से झगड़ते होंगें। वैसा ही कुछ आपके मौसी या मामा के बीच होता होगा......और अब, अब कभी-कभी और बड़ी औपचारिकता से मिलना......। मुझे यहां पर एक किस्सा याद आ रहा है- जब मुझे इस रेशमी जाल (रिश्ते) की समझ नहीं थी तब मेरी बड़ी दीदी की शादी हुई, मुझे समझ नहीं आया कि दी अब हमारे साथ क्यूं नहीं रहती.....? खैर कुछ दिनों बाद दी जब घर आई तब हम भाई- बहनों में लड़ाई हुई...... माँ सुलझाने आई और बोली ”अब दीदी की शादी हो गई है, ऐसे मत लड़ा करो” तब ये बात पल्ले नहीं पड़ी, लगा कि वो दी की साइड ले रहीं है, लेकिन अब समझ आता है कि वो एक सच था जो ज़िंदगी का हिस्सा बन गया और महसूस बाद में हुआ।





ऐसे
ही हमारे हर रिश्ते में बदलाव आता है और महसूस बाद में होता है। कुछ रिश्ते ऐसे हो जाते है, जैसे हम गुलाब के फूल को अपनी किताब में रख लेते है और कभी अचानक किताब पलटते वक़्त वो फूल नज़र आने पर हस देते है, जो मुरझाने के बाद भी अपनी महक नहीं छोड़ते। कुछ ऐसे भी हो जाते है जिनका ज़िक्र भी करना हमें पसंद नहीं आता।
हाँ ये रेशमी जाल हमारा पीछा नहीं छोड़ेंगें लेकिन हम तो ये ही कहेंगें कोशिश करिए कि हर रिश्ता गुलाब के फूल जैसा ही रहे.......खिला न सही मुरझाया ही सही पर महक तो रहे।
-शुभी चंचल