Aagaaz.... nayi kalam se...

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Kya likhun...???

Saturday, October 8, 2016

गुलाब

मेरी पहली कहानी--

सांची की आंखें झपकने लगी थीं। बहुत देर से मां बाल सहला रही थी पर वो सोना नहीं चाहती थी। गुस्सा आ रहा था उसे।
उसने मां का हाथ झटक दिया।
थोड़ा गुस्सा और आधी रोने जैसी आवाज़ में बोली- तुम अब तक हमें बच्चा समझती हो। हम कोई छोटे बच्चे नहीं हैं।
मधु ने तिरछी मुस्कान के साथ कहा- हां मेरी बिटिया तो बहुत बड़ी हो गयी है। अब वो स्कूल से अकेले आ भी जाती है।
सांची की आवाज़ ठीक हो गई थी और नाराज़गी में कई सवाल घुल गये थे।
उठकर बैठ गयी और बोली- तो तुम हमेशा हमें राजकुमारियों की कहानी क्यों सुनाती हो। मुझसे बड़ों की तरह बात क्यों नहीं करती? तुम ही तो कहती हो बेटी बड़ी होकर दोस्त बन जाती है। तुम्हारा तो कोई दोस्त भी नहीं।
मधु अपनी 13 साल की बेटी को बड़ा होते देख रही थी।
सांची ने इस बार मिमियाते हुए कहा- मां, कोई बड़ों वाली कहानी सुनाओ न। सुनाओ न। प्लीज़।
मधु ने सख्ती से कहा- दो बज रहे हैं। एक घण्टे बाद तुम्हें ट्यूशन जाना है। थोड़ी देर सो लो।
सांची ने फिर कहा- हमें नींद नहीं आ रही। सुनाओ न मां प्लीज़।
मधु को लगा सांची नहीं मानेगी।
वो कुछ सोचने लगी।
कुछ देर के लिए कमरे में सिर्फ पंखे की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
सांची सोच रही थी कि मां उसके लिए कोई कहानी याद कर रही है पर अब उसका सब्र जवाब दे गया।
वो मां पर लद गयी।
मां सुनाओगी?
मधु ने लंबी सांस ली जैसे किसी सफर से लौटी हो और कहा- अच्छा लेट, सुनाती हूं।
सांची- हूं।
मधु में कहानी शुरू की।
दूर के गांव में एक लड़की थी, मधु।
सांची तपाक से बोली- मधु तो तुम हो।
मधु ने उसे डांटा- हां मैं हूं। वो भी थी। तुम बीच में बोलोगी तो कोई कहानी नहीं सुनाएंगे।
सांची- अच्छा नहीं मां, अब नहीं बोलेंगे। सुनाओ न।
मधु- तो दूर के गांव में एक लड़की थी मधु। 17 साल की।
सांची- हमसे चार साल बड़ी न मां।
मधु ने उसे घूरा और सिर हिलाया।
वो दसवीं में पढ़ती थी। बहुत होनहार। सारे सब्जेक्ट में अव्वल रहती थी। बस उसे आर्ट बनानी नहीं आती थी। वैसे तो उसने साइंस ले रखी थी लेकिन उसके स्कूल में आर्ट ज़रूरी सब्जेक्ट था।
उसे हमेशा आर्ट की परीक्षा में फेल हो जाने का डर सताया करता था।
सांची ने कहा- फिर?
मधु ने उसे चिपका लिया और बोली फिर... उसे एक दोस्त मिला।
सांची उठकर बैठ गई---हां और उस दोस्त ने मधु की मदद की और वो पास हो गयी। इसलिए हमें भी अपने दोस्तों की मदद करनी चाहिए। यही न। नहीं सुननी कहानी।
मधु- नहीं मेरा बच्चा, मेरे लाल... सुनो तो आगे।
अगर कहानी ख़त्म होने के बाद न अच्छी लगे तो कट्टी कर लेना। बस?
सांची फिर मां की साड़ी पकड़ कर लेट गयी।
तो मधु को एक दोस्त मिला। उसकी आर्ट बहुत सुंदर थी। वो बहुत शांत रहता था। सारे सब्जेक्ट में पीछे बस आर्ट में अव्वल। हमेशा डांट खाता। चुपचाप।
उसका कोई दोस्त नहीं था। मधु ने उसे दोस्त बना लिया। मधु उसे बाकी सब्जेक्ट में मदद करती और वो हर समय कोई न कोई पेंटिंग बनाता रहता।
सांची- उसका नाम क्या था मां।
मधु- आलेख।
नाम लेकर मधु शांत हो गयी।
सांची- फिर क्या हुआ मां?
समय ऐसे ही बीत रहा था। आलेख रोज़ नयी पेंटिंग बनाता और मधु को दिखाता। अब वो मुस्कराने लगा था लेकिन सिर्फ मधु के सामने।
मधु उसकी पेंटिंग में डूब सी जाती थी।
वो कभी शाम का दृश्य बनाता कभी कोई लंबी वीरानी सड़क।
सांची- वीरानी?
मधु- मतलब जहाँ कोई इंसान न हो। खाली सड़क।
उसकी पेंटिंग में उदासी रहती। सैडनेस।
अब मधु को भी आर्ट अच्छी लगने लगी। आलेख ने उसे कुछ डिजाइन दिए और उनकी प्रैक्टिस करने को बोला।
मधु उन्हें बनाने लगी थी।
आलेख घर से कभी टिफिन नहीं लाता।
मधु उसे अपने टिफिन से खाने की ज़िद करती। काफी मना करने के बाद अब वो खाने लगा था। मधु उसे बात-बात पर छेड़ती और वो बस मुस्करा देता।
मधु एक सपना जीने लगी थी। उसे सब कुछ अच्छा लगने था। खूब मन लगाकर पढ़ती थी वो। उसके सामने सपनों की झड़ी लग गई थी।
उन सपनों में वो रोज़ नए रंग भरती और हां उन सारे सपनों में आलेख उसके साथ रहता। वैसा ही मुस्कराता, कैनवस में रंग भरता... मगर उदासियों में नहीं खुशियों में।
परीक्षाएं पास आ गईं थी मगर अब मधु को किसी बात का कोई डर नहीं था। वो बस चाहती थी कि आलेख अच्छे नम्बरों से पास हो जाए। वो सारे ज़रूरी सवाल उसे याद करने को कहती।
आलेख भी पूरी शिद्दत से उन्हें याद करता।
परीक्षाएं शुरू हो गईं। अब मधु और आलेख के पास ज़्यादा समय होता साथ बिताने के लिए।
एग्जाम के बाद वो लोग स्कूल के पीछे वाले बाग़ में चले जाते। मधु आलेख से पेपर में आए सवालों के जवाब पूछती। गलत होने पर गुस्सा करती और सही होने पर मुस्कराकर शाबाश कह देती।
इसके बाद बस मधु बोलती रहती... आलेख उसे सुनता रहता।
घर की बातें, बाबा की नसीहतें, मां की डांट सब बताती। आलेख हां, अच्छा कहकर सब सुनता रहता।
सांची- क्या वो दोनों एक दूसरे को प्यार करते थे?
मधु- तुम्हें पता है प्यार क्या होता है?
सांची- हां, अब हम बड़े हो गए हैं न मां।
मधु- हां लेकिन वो मधु 17 साल में भी प्यार को नहीं जानती थी। उसे बस इतना पता था कि आलेख के साथ रहना उसे अच्छा लगता था।
सांची- वो तो बहुत बच्ची थी।
मधु ने सांची का सिर सहलाया और कहा हां।
रिजल्ट आया। मधु फर्स्ट डिवीज़न पास हुई और आलेख सेकंड डिवीज़न।
मगर दोनों खुश थे।
उस दिन आलेख ने मधु को एक फूल दिया। गुलाब का फूल।
और परीक्षा में मदद करने के लिए शुक्रिया कहा।
उस दिन पहली बार मधु को शरमाने का मतलब समझ आया।
इसके बाद दोनों नहीं मिले।
मधु की मां उसे लेकर नानी के घर चली गयी।
तब फ़ोन- मोबाइल सबके घर नहीं होते थे।
हर बार नानी के घर में उधम मचाने वाली मधु इस बार बहुत उदास थी। उसका मन ही नहीं लगता था।
वापस आने के बाद उसे आलेख से मिलने की जल्दी थी लेकिन उसके घर के पास रहने वाले दूसरे लड़के ने मधु को बताया कि आलेख शहर चला गया है आगे की पढ़ाई करने।
मधु को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो कैसे आलेख से बात करे, मिले।
उसने कई बार सोचा कि उसके घर जाए और शहर का पता ले ले। पते पर वो चिट्ठी लिख सकती थी।
लेकिन उसकी हिम्मत न पड़ी।
क्या कहेगी वो आलेख की मां से... उसकी अपनी मां क्या सोचेगी... बाबा ने देख लिया तो।
मधु की हंसी कहीं गुम हो गयी थी। वो बस आलेख की निशानी उस गुलाब के फूल से बतियाती।
अब उसका कोई दोस्त नहीं था।
इंटर में भी उसने साइंस ली।
जैसे-तैसे इंटर बीत रहा था। उसे लगा शायद इंटर के बाद आलेख आएगा।
एक बार ही सही, अपने घर वालों से मिलने तो ज़रूर आएगा।
लेकिन वो नहीं आया।
इंटर की परीक्षाएं ख़त्म हो गईं।
छुट्टियां आ गईं।
मधु और पढ़ना चाहती थी। शहर जाना चाहती थी। मगर उसके माँ-बाबा ने उसके लिए कुछ और सोच लिया था।
गांव में उस समय लड़कियों की जल्दी शादी हो जाया करती थी।
सांची ने उदास होकर कहा- ओह नो.... तो क्या उसकी शादी हो गयी?
उसने अपने मां- पापा को बोला क्यों नहीं कि वो आलेख को प्यार करती है।
मधु हंसते हुए- क्योंकि वो पगली अब भी उस प्यार को नहीं समझी थी।
सांची- फिर?
मधु- फिर क्या... कहानी ख़तम।
सांची-नहीं मां आगे भी तो कुछ हुआ होगा न?
हो सकता है एन शादी के दिन बाइक पर बैठकर आलेख आ गया हो और उसे भगा ले गया हो।
या फिर आलेख ने ही उसके माँ-पापा से शादी की बात कर ली हो।
मधु हंस पड़ी। उसकी आँखों में नमी थी। उसने सांची को गले लगा लिया। उसके माथे को चूमा और कहने लगी...
नहीं मेरी सच्चू ऐसा कुछ नहीं हुआ। मधु की शादी किसी और से हो गयी। वो अपने आपको नए परिवार में डुबोने की कोशिशों में खो गयी।
सांची- क्या वो फिर कभी आलेख से नहीं मिली?
मधु- तुम कितने सवाल करती हो? तीन बज गए हैं तुम्हें ट्यूशन जाना है। चलो जाओ मुँह धो।
सांची- नहीं मां प्लीज़ बता दो न।
मधु- ओफ्फो।
हां.... कई साल बाद बड़े शहर के एक मॉल में दोनों मिले थे। मधु को एक बेटी हो चुकी थी।
आलेख पहले से ज़्यादा गंभीर लगने लगा था। उसकी दाढ़ी बढ़ गयी थी।
मधु ने उससे पूछा- तुम अकेले आए हो? मिसेज नहीं आईं?
आलेख ने कहा था उसने शादी नहीं की।
मधु कुछ पलों के लिए उसपर से नज़र नहीं हटा सकी थी।
मधु ने उसे विजिटिंग कार्ड दिया और घर आने को कहा।
फिर आलेख कुछ-कुछ दिनों में उसके घर आने लगा।
मधु जो शादी के बाद हंसना भूल चुकी थी... जिसने अपने आपको सिर्फ एक बड़े अफसर की बीवी बना लिया था... आलेख के घर आने के बाद से वो फिर अपने 17 साल की उम्र में पहुंच गई थी।
वो आलेख की पसंद की चीजें बनाकर उसे खिलाती और आलेख बस मुस्कराकर खा लेता।
पहले की तरह ही आलेख अब भी मधु से ज़्यादा न बोलता मगर मधु की बेटी से उसका रिश्ता गहराता जा रहा था।
वो मधु की बेटी के लिए तोहफे लाता। उसी के साथ खेला करता। उसकी पेंटिंग बनाता। मधु की बेटी को रंगों से खेलना बहुत पसंद था।
सांची- मेरी तरह?
मधु- हां तुम्हारी तरह।
सांची- अगर कमल अंकल का नाम आलेख होता तो ये कहानी आपकी भी हो सकती थी न मां?
वो भी तो मेरे लिए तोहफे लाते हैं, मेरी पेंटिंग बनाते हैं...।
मधु- हां मगर अब तुम तुरंत जाकर मुँह धो। ट्यूशन के लिए देर हो जाएगी। अब कोई सवाल नहीं?
सांची चली जाती है। मधु उठकर अपनी अलमारी के सबसे निचले खाने से एक पुरानी किताब निकालती है। उसमें एक फूल होता है। गुलाब का फूल। मधु उसे देख ही रही होती है तभी सांची आ जाती है।
मधु किताब बन्द कर रख देती है।
सांची कपडे बदलते हुए पूछती है- अच्छा मां क्या मधु अपने हसबैंड से प्यार करती है?
मधु गुस्से से कहती है- अब अगर एक भी सवाल किया तो थप्पड़ खाओगी। चलो जाओ जल्दी सवा तीन हो गया है।
सांची गुस्सा नहीं होती। वो मां को प्यार करती है और कहती है- आज की कहानी बहुत अच्छी थी मां।
थैंक्यू।
दरवाज़े पर पहुंचकर सांची लटककर पूछती है- मां अगर मुझे कोई आलेख मिला तो तुम हमें उसके साथ जाने दोगी न?
मधु ने अपनी हंसी छिपाते हुए कहा-
हां मगर पूरी पढ़ाई ख़तम होने के बाद।
सांची सीढ़ियों पर चिल्लाती हुई भाग जाती है-
उससे पहले हम जाएंगे भी नहीं।
मधु को सांची पर बहुत प्यार आता है।
अचानक उसे याद आता है उसे बाजार जाना है। शाम को उसके पति के दोस्त आने वाले हैं खाने पर।
उसका मन करता है एक बार गुलाब को देखने का पर वो अलमारी बंद कर देती है और चल देती है बाज़ार।