Aagaaz.... nayi kalam se...

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Kya likhun...???

Sunday, February 26, 2012

अधूरा सा कुछ...



अक्सर अधूरा लगता है मुझे सब कुछ,
ठहाकों की आवाज़ में एक ख़ामोशी रहती है,
अक्सर हंसी में मुझे आंसू दिखते है,
भीड़ में इक चेहरा रहता है सामने मेरे,
पूछता है सवाल मुझसे हर बार एक ही,
कैसे मुस्कुरा सकती हूँ मैं,
गुनगुना कैसे सकती हूँ सुरों को,
जब खुश नहीं वो, खामोश सी है,
चुप सी है इक ज़िन्दगी की हर सरगम जब,
गा सकती हूँ कैसे मैं गीत कोई,
मुझे गुनाह लगता है कभी हँसना भी,
मैं हो जाती हूँ अकेली भीड़ में भी,
नही ढूंढ पाती जब उस चेहरे के सवालों के जवाब,
अक्सर अधूरा लगता है मुझे सब कुछ...
-शुभी चंचल

Friday, February 10, 2012

मिली जुली हलचलें...



एक तरफ बधाईयों का तांता और खुशी से कांपते हुए पैर थे तो दूसरी तरफ सहानुभूति भरे शब्द और रूंधे हुए गले। पूरे आईआईएमसी में एक हलचल सी नज़र आ रही थी। उसे भी चारों तरफ से बधाइयाँ मिल रहीं थीं, आस-पास के लोगों का कहना था कि तुम्हारा तो होना ही था। सीमा को कुछ समझ नहीं आ रहा था। कई सारी चीजे़ं उसके ज़ेहन में चल रहीं थी। इसी बीच वो कुछ पीछे चली गई थी। अभी कुछ सालों पहले जिस शब्द का मतलब भी नहीं पता था उसे, आज वो शब्द उसके लिए कहा जा रहा था। उसकी बात का जवाब देते हुए लगभग दो साल पहले ही उसके भाई ने कहा था कि जब ’पढ़ते-पढ़ते नौकरी’ लग जाए तो उसे कैम्पस सेलेक्शन कहते हैं। सीमा उस वाकये को याद ही कर रही थी कि अचानक उसकी दोस्त ने उसे गले लगा लिया। उसने शुक्रिया अदा किया और चली गई। उसके ज़ेहन में उसकी हर वो छोटी-बड़ी कामयाबी और नाकामयाबी कौंध रही थी जो उसने अब तक पायी थी। हर किसी को उसकी ये सफलता साफ दिखाई पड़ रही थी मगर उसके मन में उठने वाले सवाल को कुछ ही समझ पा रहे थे। उसका मन उन लोगों की तरफ भाग रहा था जिन्होंने उसे इसे मुकाम पर पहुंचने में अपना बहुत कुछ दिया। शायद उसे अभी किसी और खुशी के इंतज़ार के साथ ये समझने में वक्त लगेगा कि आखिर हुआ क्या है.....



-शुभी चंचल