Aagaaz.... nayi kalam se...

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Kya likhun...???

Wednesday, May 1, 2013

ख़ामोशी...


दिन भर के बाद कमरे का एकाकीपन भी अच्छा है,
इस सन्नाटे में पंखा भी चुप ही अच्छा लगता है,
बेआवाज़ भाषा गूंजती है दीवारों में,
खुद को सुनता है शख्स, यादों और सपनों के साथ,
कई बार नींद को पटखनी भी देता है,
कई बार आंसू परेशां भी करते हैं,
मगर ये हिस्सा है उस एकाकीपन का, 
जो वो चाहता है दिनभर के बाद अपने कमरे में ...
- शुभी चंचल

Friday, February 15, 2013

गिद्धों का शिकार...

आने वाले तूफानों से अनजान,
फुदकती है वो घर के आँगन में,
हँसती है, हँसाती  है,
गूंजती है उसकी आवाज़,
मोहल्ले की आखिरी गली तक,
तूफान से पहले की आंधी आती है जब,
सहम तो जाती है वो,
मगर फिर खुद ही संभल भी जाती है,
दूर कहीं उठ रही लहरों को भाप नहीं पाती,
सीख लेती है ज़िन्दगी के हुनर कई,
अपने हुनर का लोहा भी मनवाती है,
मगर तूफान जो आना था, रुकता नहीं,
आता है वो अपने पूरे आवेग से,
दुनिया भर का गुस्सा लिए,
वो डर जाती है, सिकुड़ने सी लगती है
उसकी आवाज़ और बाहें एक साथ,
उसे है प्यार अपने पंखों से,
खुले नीले आसमान से,
मगर वो घिर चुकी है ...
फुदकने, हँसने, हंसाने वाली चिड़िया,
हो जाती है गिद्धों का शिकार ...
-शुभी चंचल


Monday, February 4, 2013

अच्छा लगता है...

मुझे अच्छा लगता है,
डोर से छूटी पतंग का खुद मुकाम चुनना 
शाम का वो ढलता-उदास सूरज,
मुझे अच्छी लगती है,
नल से गिरने वाली आखिरी धार,
दुकान में बची आखिरी किताब,
मुझे अच्छा लगता है,
बर्तन में बचा वो आखिरी कौर,
रजाई में लगा धागे का आखिरी टांका,
मुझे ये सब अच्छा लगता है,
क्योंकि ये सब ख़त्म हो रहे हैं,
अपनी आखिरी सांसों के साथ,
मुझे अच्छी लगती है, अपनी ख़ुशी, इच्छाएं और उम्मीद ...
-शुभी चंचल