दिन भर के बाद कमरे का एकाकीपन भी अच्छा है,
इस सन्नाटे में पंखा भी चुप ही अच्छा लगता है,
बेआवाज़ भाषा गूंजती है दीवारों में,
खुद को सुनता है शख्स, यादों और सपनों के साथ,
कई बार नींद को पटखनी भी देता है,
कई बार आंसू परेशां भी करते हैं,
मगर ये हिस्सा है उस एकाकीपन का,
जो वो चाहता है दिनभर के बाद अपने कमरे में ...
- शुभी चंचल