एक तरफ बधाईयों का तांता और खुशी से कांपते हुए पैर थे तो दूसरी तरफ सहानुभूति भरे शब्द और रूंधे हुए गले। पूरे आईआईएमसी में एक हलचल सी नज़र आ रही थी। उसे भी चारों तरफ से बधाइयाँ मिल रहीं थीं, आस-पास के लोगों का कहना था कि तुम्हारा तो होना ही था। सीमा को कुछ समझ नहीं आ रहा था। कई सारी चीजे़ं उसके ज़ेहन में चल रहीं थी। इसी बीच वो कुछ पीछे चली गई थी। अभी कुछ सालों पहले जिस शब्द का मतलब भी नहीं पता था उसे, आज वो शब्द उसके लिए कहा जा रहा था। उसकी बात का जवाब देते हुए लगभग दो साल पहले ही उसके भाई ने कहा था कि जब ’पढ़ते-पढ़ते नौकरी’ लग जाए तो उसे कैम्पस सेलेक्शन कहते हैं। सीमा उस वाकये को याद ही कर रही थी कि अचानक उसकी दोस्त ने उसे गले लगा लिया। उसने शुक्रिया अदा किया और चली गई। उसके ज़ेहन में उसकी हर वो छोटी-बड़ी कामयाबी और नाकामयाबी कौंध रही थी जो उसने अब तक पायी थी। हर किसी को उसकी ये सफलता साफ दिखाई पड़ रही थी मगर उसके मन में उठने वाले सवाल को कुछ ही समझ पा रहे थे। उसका मन उन लोगों की तरफ भाग रहा था जिन्होंने उसे इसे मुकाम पर पहुंचने में अपना बहुत कुछ दिया। शायद उसे अभी किसी और खुशी के इंतज़ार के साथ ये समझने में वक्त लगेगा कि आखिर हुआ क्या है.....
-शुभी चंचल
again a nice rite-up dost.. :)
ReplyDeleteThanks bhawna... :-)
ReplyDeleteबस उन लोगों को भूल मत जाना...
ReplyDeleteagain congt...........
ReplyDeletethanks deepu.. :-)
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