Aagaaz.... nayi kalam se...

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Kya likhun...???

Monday, February 4, 2013

अच्छा लगता है...

मुझे अच्छा लगता है,
डोर से छूटी पतंग का खुद मुकाम चुनना 
शाम का वो ढलता-उदास सूरज,
मुझे अच्छी लगती है,
नल से गिरने वाली आखिरी धार,
दुकान में बची आखिरी किताब,
मुझे अच्छा लगता है,
बर्तन में बचा वो आखिरी कौर,
रजाई में लगा धागे का आखिरी टांका,
मुझे ये सब अच्छा लगता है,
क्योंकि ये सब ख़त्म हो रहे हैं,
अपनी आखिरी सांसों के साथ,
मुझे अच्छी लगती है, अपनी ख़ुशी, इच्छाएं और उम्मीद ...
-शुभी चंचल 

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