
रिश्ते............इन रिश्तों के बंधन से कोई नहीं बच पाता या कह सकते है इस रेशम के जाल से कोई निकलना ही नहीं चाहता। दुनिया में आते ही तमाम रिश्ते घेर लेते है। बड़े होते-होते कई रिश्ते जुड़ते चले जाते है, कई बिछड़ते भी है। लेकिन "बदलाव" हर रिश्ते में आते ही है, कभी अच्छे और कभी बुरे भी..........ये बदलाव हम खुद नहीं लाते और कभी-कभी चाहते भी नहीं है पर अचानक हमें महसूस होता है कि ये रिश्ता बदल गया। फिर अगर बदलाव अच्छा है तो एक मुस्कुराहट से दिल तसल्ली करता है और अगर बुरा है तो एक दूसरे पर आरोप लगते है कि ”आप बदल गये”। असल में बदलते तो रिश्ते है......क्यूं ?
रिश्ते की भी कई नस्लें होती है। कुछ रिश्ते हमें दुनिया में आते ही विरासत में मिल जाते हैं, तो कुछ ज़िंदगी के सफर में....... इसी बीच बदलाव भी अपना खेल दिखाता रहता है। जब रिश्तों में बुरा बदलाव महसूस होता है तो अजीब सी हलचल महसूस होती है, दिल उस बदलाव को स्वीकार नहीं कर पाता......पर सच्चाई तो बदली नहीं जा सकती। अब ज़रा अपने आस-पास के बदलते रिश्ते पर नज़र डालिए..........अगर आप बुआ और मौसी के रिश्ते से इत्तेफ़ाक रखते हैं तो ज़रा सोचिए कभी आप की बुआ आपके पापा या चाचा के साथ वैसे ही खेला और झगड़ा करती होंगी जैसे कुछ दिन पहले या अब भी आप अपने भाई-बहनों से झगड़ते होंगें। वैसा ही कुछ आपके मौसी या मामा के बीच होता होगा......और अब, अब कभी-कभी और बड़ी औपचारिकता से मिलना......। मुझे यहां पर एक किस्सा याद आ रहा है- जब मुझे इस रेशमी जाल (रिश्ते) की समझ नहीं थी तब मेरी बड़ी दीदी की शादी हुई, मुझे समझ नहीं आया कि दी अब हमारे साथ क्यूं नहीं रहती.....? खैर कुछ दिनों बाद दी जब घर आई तब हम भाई- बहनों में लड़ाई हुई...... माँ सुलझाने आई और बोली ”अब दीदी की शादी हो गई है, ऐसे मत लड़ा करो” तब ये बात पल्ले नहीं पड़ी, लगा कि वो दी की साइड ले रहीं है, लेकिन अब समझ आता है कि वो एक सच था जो ज़िंदगी का हिस्सा बन गया और महसूस बाद में हुआ।

ऐसे ही हमारे हर रिश्ते में बदलाव आता है और महसूस बाद में होता है। कुछ रिश्ते ऐसे हो जाते है, जैसे हम गुलाब के फूल को अपनी किताब में रख लेते है और कभी अचानक किताब पलटते वक़्त वो फूल नज़र आने पर हस देते है, जो मुरझाने के बाद भी अपनी महक नहीं छोड़ते। कुछ ऐसे भी हो जाते है जिनका ज़िक्र भी करना हमें पसंद नहीं आता।
हाँ ये रेशमी जाल हमारा पीछा नहीं छोड़ेंगें लेकिन हम तो ये ही कहेंगें कोशिश करिए कि हर रिश्ता गुलाब के फूल जैसा ही रहे.......खिला न सही मुरझाया ही सही पर महक तो रहे।
-शुभी चंचल
ऐसे ही है जीवन और इसका जाल
ReplyDeleterishton ko samjhna kaash aasan hota..
ReplyDeleteरिश्तों के ताने बाने को बखूबी प्रस्तुति किया है - शुभकामनाएं तथा शुभ आशीष
ReplyDeletebahuttttt hi achhaaa.....
ReplyDeleteरिश्ते दिल से बनते हैं, बने-बनाए रिश्ते सिर्फ रिश्ते तक ही सीमित रहते हैं...दिल तक कम आते हैं...यह मेरा मानना है....जो दिल में घर कर जाएं वहीं रिश्ते जीने लायक होते हैं....
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट
चलिए आप से भी एक रिश्ता बन जाए
आपको फॉलो कर लेती हूं...
आप भी आइए...
rishta ek aisa jaal hai jisko samjhne ki koshish karoge to utna hi usme or uljhte jaoge......so keep enjoy ur life yaar
ReplyDeletend nice
हाँ वक्त के साथ बहुत से बदलाव आ रहे हैं...... सार्थक प्रासंगिक आलेख
ReplyDeleteकोशिश करिए कि हर रिश्ता गुलाब के फूल जैसा ही रहे.......खिला न सही मुरझाया ही सही पर महक तो रहे।...सुन्दर पोस्ट बधाई हो..
ReplyDeleteaap sabhi ka shukriya....:-)
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