आज देश की राजधानी में आए लगभग एक महीना हो गया साथ ही आई आई एम सी का भी. इस एक महीने में हमनें हजारों पलों को जिया है और सिर्फ जिया ही नहीं बल्कि कई एहसासों को महसूस किया है.... हम ये तो नहीं कहेंगे कि इन हजारों पलों ने हमें पूरी तरह बदल दिया है लेकिन अपने अन्दर हुए कई बदलाव को हम नकार भी नहीं पा रहें है........ आज से कुछ महीने पहले हम इस समय की कल्पना भी नहीं कर सकते थे, वैसे तो हम अपने जीवन के अगले पल की होनी को भी नहीं जानते लेकिन फिर भी हर इंसान की कुछ कल्पनाएं होती ही हैं. मेरा मानना है कि मेरे प्रयास के साथ साथ (जिसमें मेरे फॉर्म भरने के साथ साथ परीक्षा देने जाना भी सम्मिलित है)उस वक़्त का भी हाथ है जो शायद उस वक़्त मेरे साथ था.
यहाँ आना (रेल का अकेला सफ़र भी), हॉस्टल लाइफ देखना, अलग अलग जगहों के लोगों, भाषियों से मिलना, कुछ नए दोस्तों का साथ मेरे लिए काफी रोचक रहा है.... हमें आज ये कहने में ज़रा भी हिचक नही होती कि अपने शहर में रहते हुए भी जिस आत्मविश्वास की कमी हमने महसूस की (जिसमें से एक अंग्रेजी भाषा में महारत न होना भी था) वो यहाँ नही होती ... ये बात तब ध्यान आई जब यहाँ कुछ लोगों ने मेरे आत्मविश्वास कि दाद दी(जिस पर हमें शक है).. यहाँ हम अक्सर लोगों से कहते है कि हमें अच्छी अंग्रेजी नहीं आती... और ये कहते हुए हमें ख़ुशी नहीं तो दुःख भी नहीं होता....
जहाँ तक बात करे बदलाव कि तो पिछले चार सालों में कई बदलाव महसूस हुए लेकिन यहाँ की कुछ चीजों पर वाकई अचम्भा होता है जैसे पढ़ने की अजीब रूचि उत्पन्न हो रही है.... जो नींद से भी ज्यादा अच्छी लगने लगी है (ये अचम्भा वो लोग महसूस कर सकेंगे जो मेरी नींदप्रेम को जानते है) , पढ़ने से मेरा मतलब सिर्फ पाठ्यक्रम की पढाई से नहीं हैं. इसका एक कारण जो हमें समझ आता है वो आस- पास का माहौल है या शायद बाकियों से कम जानने की शर्मिंदगी... लेकिन ये बातें तो पहले भी थी पर मजबूरी में पढ़ना और पढ़ने में मज़ा आना दो अलग अलग बातें है... और सच है कि हमें अब पढ़ने में मज़ा आने लगा है....
कुछ अजीब स्वभाव और कुछ असाधारण घटनाएं(जो शायद उनके लिए साधारण हो) इन सब से भी बहुत कुछ सीख रहें हैं...
कितनी ही ऐसी सोच जो हमारे अन्दर अपना पक्का मकान बना चुकी थी शायद अब उनकी नींव हिल चुकी है... कभी कभी बेहद व्यस्त दिन के आखिर में भी खुद को इतना तरो-ताज़ा महसूस करते है जितना किसी छुट्टी के बाद....
कई मिथ्या, कई भ्रम टूटें है और कई नए विचारों ने जन्म लिया है....
अभी तक का ये सफ़र तो मज़ेदार रहा ...आशा है कि आगे भी ये ताज़गी बरक़रार रहेगी... हमनें "हमनें" शब्द का उपयोग जानबूझ कर किया है क्यूंकि यहाँ कुछ लोगों को इस पर शर्मिंदगी होती है... खैर आज क्लास में बैठे बैठे अचानक कुछ लोगों के लिए मन श्रद्धा से झुक गया जिसमें वो सभी लोग शामिल है जिनकी वजह से आज हम यहाँ है और इस नए जीवन का लुत्फ़ उठा रहें है .... वैसे तो ये सब पहले ही लिखना चाहते थे लेकिन आज रुकना नामुमकिन सा हो गया... अभी के लिए इतना ही.. आगे और भी बातें होगी...
ये लेख खासकर उन सभी दोस्तों के लिए है जो मेरी तरह इस अनजाने शहर में आए है, अपनों को छोड़कर, अपना घर छोड़कर.....
kavi ban rahi ho ..... lol bt jo likha satik likha hai............ miss u a lot <3
ReplyDeleteDear Shubhi
ReplyDeleteaaj tumhare is blog ko pad kar mujhe kuchh apane purane din yad aa gaye. Mujhe pata hai ki tum me bahut si anokhi bate hai par tum unse anjan ho ya thi par ab mujhe pura vishwash hai ki tum unko pehchan kar nit nayi unchaiyo ko pawogi.
Aasaman ki unchaiya tumhara intzar kar rahi hai jara apane pankh to kholo aur pa lo un unchaiyo ko.
Ratnesh
Shukriya ratnesh ji..
ReplyDeleteबहुत खूब शुभी...कुछ ऐसा ही परिवर्तन हम भी महसूस कर रहे हैं..
ReplyDeletedear shubhi ji,
ReplyDeleteapne jo bhi likha hai bahut khub likha hai. har insaan ko apni zindgi me sangharsh karna padhta hai, bina sanghars kiye koi unchaiyaan nahi pa sakta.
"koun kehta hai manjilen nahi milti manjilen to milti hai kadam badhane se
yu hi nahi badalti kisi ki takdeerain,
takdeerain to badalti hai kuch kar dikhane se.."
haan... ji...komal... dhanyawad aapki prasansha ke liye.....
ReplyDeletelagrha hai iimc me kuch jyada hi priwartan ho gya accha hai jari rkho
ReplyDelete