
आख़िरकार हमने ये किताब पढ़ ही डाली.. पिछले करीबन 6-7 महीनों से हम इस किताब को अपने पास रखकर इसे पढ़ने का असफल प्रयास कर रहें थे... दिल्ली आने के बाद अचानक इसे पढ़ने की तलब बढ़ गयी... फिर तो जैसे जैसे पढ़ते गये.. और पढ़ने का जूनून सा लगने लगा... रात में सोने के समय भी लगता था कि एक पन्ना और.... इसकी एक वजह यह है कि हमें हमेशा से देश की आज़ादी से जुड़ी घटनाएं आकर्षित करती रही है... चाहे वो कोई देशभक्ति की फिल्म रही हो या कुछ पंक्तियाँ हो... जब शुरुआत में पढ़ना शुरू किया तो उसमें ब्रिटेन और वहां से जुड़ी कुछ बातें लिखी थी... शायद इसीलिए मन ज्यादा जुड़ाव महसूस नहीं कर पा रहा था... लेकिन आगे पढ़ने के बाद महसूस हुआ कि वो पृष्ठभूमि देना ज़रूरी था.... और आगे पढ़ने के बाद हमने फिर से पिछले पन्नों को पलटा और ध्यान से पढ़ा... किताब के लेखकों डोमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स के साथ साथ हम तेजपाल सिंह धामा के बहुत शुक्रगुज़ार है जिन्होंने इसका हिंदी में सम्पादन किया क्यूंकि अगर ये अंग्रजी में होती और हम पढ़ते भी तो शायद आधे से भी कम आनंद उठा पाते.. खैर किताब बड़े ही रोचक अंदाज़ में लिखी गयी है ... चाहे वो.. ब्रिटेन का भारत को आज़ादी देने का फैसला हो या हमारे देश के राजा- महाराजाओं के काम, गाँधी, जिन्ना, नेहरु, पटेल, वीर सावरकर, माउंटबेटन, गोडसे आदि के किरदार हो या उस समय की राजनीति, सभी ने हमें बांधे रखा... खासकर विभाजन के समय
होने वाले भयानक रक्तपात को पढ़ते समय मेरे रोंगटे खड़े हो गये... हम तो बचपन से कहानियों में, फिल्मों में और भी कई जगहों से उस समय के हालात को सुनते आ रहें है लेकिन अगर कोई इन सब से बिलकुल अनजान होकर इसे पढ़े तो वाकई उसके लिए ये दिल दहला देने वाला लेख बन जायेगा...
विभाजन की वो पीड़ा हम में से कोई समझ भी नहीं सकता क्यूंकि वो एक भयानक स्वपन से भी भयानक था... इसके बाद गांधी जी की हत्या का पूरा विवरण भी किताब से नज़रे हटने नहीं देता... इन सब के बाद ये बताना ज़रूरी है कि इस किताब को पढ़कर मेरे बहुत सारे भ्रम टूट गए.. सबसे खास बात ये कि जब ये किताब अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंची तो इस ख़ुशी के साथ कि हमने इसे पढ़ लिया है... एक अजीब सी बैचेनी हुई.. लगा कि हम एक दुनिया से बाहर आ रहें है... उसे और देखना चाहते है, वहां के लोगों से और जुड़ना चाहते है... लेकिन ऐसा हुआ नहीं... मेरी माने तो इस किताब का अगर पार्ट २ आ जाए तो हम उसे भी इतनी ही रोचकता से पढेंगें.... चलते- चलते मेरी अपने दोस्तों से यही गुज़ारिश है कि एक मर्तबा इसे ज़रूर पढ़ें... हमें पूरा विश्वास है कि ये किताब आपको भी उतनी ही अपनी लगेगी जितनी हमें लगी....
शुक्रिया...
-शुभी चंचल
विभाजन की वो पीड़ा हम में से कोई समझ भी नहीं सकता क्यूंकि वो एक भयानक स्वपन से भी भयानक था... इसके बाद गांधी जी की हत्या का पूरा विवरण भी किताब से नज़रे हटने नहीं देता... इन सब के बाद ये बताना ज़रूरी है कि इस किताब को पढ़कर मेरे बहुत सारे भ्रम टूट गए.. सबसे खास बात ये कि जब ये किताब अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंची तो इस ख़ुशी के साथ कि हमने इसे पढ़ लिया है... एक अजीब सी बैचेनी हुई.. लगा कि हम एक दुनिया से बाहर आ रहें है... उसे और देखना चाहते है, वहां के लोगों से और जुड़ना चाहते है... लेकिन ऐसा हुआ नहीं... मेरी माने तो इस किताब का अगर पार्ट २ आ जाए तो हम उसे भी इतनी ही रोचकता से पढेंगें.... चलते- चलते मेरी अपने दोस्तों से यही गुज़ारिश है कि एक मर्तबा इसे ज़रूर पढ़ें... हमें पूरा विश्वास है कि ये किताब आपको भी उतनी ही अपनी लगेगी जितनी हमें लगी....
शुक्रिया...
-शुभी चंचल
yaar jab tum Lucknow aana to is book ko bhi le aana plz. ok. hame bhi padhni hai...
ReplyDeleteमैंने यह किताब नहीं पढ़ी है, पर आपकी समीक्षा ने जिज्ञासा पैदा कर दी है. आपने अच्छी समीक्षा लिखी है, बधाई. और इस ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद, आपने जो मेरे द्वारा संपादित पुस्तक पढ़ी।
ReplyDeleteतेजपाल सिंह धामा
फिल्म स्क्रिप्ट राइटर, मुंबई
sukriya sir...
ReplyDeletepadh to maine ise tin sal pahle hi liya tha but ise pad kar ehsah phir se nya ho gya is book ke prati
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