
अक्सर अधूरा लगता है मुझे सब कुछ,
ठहाकों की आवाज़ में एक ख़ामोशी रहती है,
अक्सर हंसी में मुझे आंसू दिखते है,
भीड़ में इक चेहरा रहता है सामने मेरे,
पूछता है सवाल मुझसे हर बार एक ही,
कैसे मुस्कुरा सकती हूँ मैं,
गुनगुना कैसे सकती हूँ सुरों को,
जब खुश नहीं वो, खामोश सी है,
चुप सी है इक ज़िन्दगी की हर सरगम जब,
गा सकती हूँ कैसे मैं गीत कोई,
मुझे गुनाह लगता है कभी हँसना भी,
मैं हो जाती हूँ अकेली भीड़ में भी,
नही ढूंढ पाती जब उस चेहरे के सवालों के जवाब,
अक्सर अधूरा लगता है मुझे सब कुछ...
-शुभी चंचल