
जिंदगी रात नहीं जो गुज़र जाएगी,
एक दिन है जो ढल रहा है धीरे-धीरे।
अक्सर मिलकर लोग बिछड़ जाते है,
फिर किसी मोड़ पर नज़र आते है,
याद आती है एक झलक में बीती बातें सारी,
एक चक्र है जो चल रहा है धीरे-धीरे,
रखते है कई चाह, कुछ अलग कर जाने की,
किसी को मिलती है मंजिल, किसी को कसक है न पाने की,
कोई तो आग रहती है हर दिल में,
एक शोला है, जो जल रहा है धीरे-धीरे,
बाद मुद्दतों के नज़र आती है कमी कोई,
आंसू नहीं गिरते मगर रहती है नमी कोई,
जब परदा उठता है सच्चाई से तो मालूम पड़ता है,
ये दोस्त के खोल में छलिया है जो छल रहा है धीरे-धीरे।।
-शुभी चंचल
ज़िन्दगी चलती है धीरे धीरे ...
ReplyDeleteएक सबब दे जाती है धीरे धीरे...
जब सब होना है धीरे धीरे .....
तो सब गम क्यों नहीं चले जाते धीरे धीरे .....
Kya baat... hai di.... very nice lines..:-)
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