वो जिससे अभी कुछ दिन पहले मुलाकात हुई। बात हुई। अचानक उससे इतनी नजदीकियां क्यों है? या वो जिससे कई साल का रिश्ता था... अचानक उससे फासले क्यों हैं? क्या है जो समय के साथ एक बच्चे और उसकी मां के बीच के प्यार को बदल देता है? और क्या है वो जो सबसे प्यारे दोस्त को बीते कल की एक कहानी बना देता है?
इन सवालों से कोई बचा रह गया है क्या? क्या कभी ऐसा सवाल आपके मन में नहीं आया?
आया है.... ज़रूर आया है और हर बार आपने बहाना बनाया है...। लोग बदल जाते हैं... हालात बदल जाते हैं... रिश्ते बदल जाते हैं। क्यों... इसी तरह समझाया है न खुद को।
मुझे लगता है कि बदलती है तो सिर्फ ज़रूरत।
ये ज़रूरत बड़ी चीज़ है। किसी भी रिश्ते के लिए ऑक्सीजन है। ये ख़त्म तो रिश्ता भी ख़त्म। खास बात ये है कि ऑक्सीजन की तरह ये भी एकदम से ख़त्म नहीं होती। धीरे-धीरे शुरू होकर धीरे-धीरे ही ख़त्म होती है।
कैसे जन्म लेता है कोई रिश्ता...?
खासकर वो रिश्ते जो हमें विरासत में नहीं मिलते।
एक ज़रूरत से....। ज़रूरत उस कान की जो सुने हमें। उन पैरों की जो साथ चले।
ज़िन्दगी के खालीपन को भरने की या जो कुछ भरा हुआ है मन में उसे निकालने की ज़रूरत।
जहां से ये ज़रूरत पूरी होती दिखी वहां बन गया रिश्ता। फिर....। फिर ज़रूरत पूरी हो गई।
जब कुछ पूरा हो जाता है तब वो अपनी अंतिम अवस्था में आ जाता है।
ज़रूरत पूरी यानी ख़त्म हो रही है। ये बात और है कि दो लोगों के बीच के रिश्ते में किसी की ज़रूरत पहले ख़त्म हो जाए और किसी की कुछ देर बाद। पर जब एक की ख़त्म हो जाती है तो ऑक्सीजन कम हो जाता है।
फिर दूसरे की ज़रूरत को ख़त्म होना पड़ता है।
.... चांद पूरा होने के बाद फिर शुरू होता है।
ज़रूरत ख़त्म होने के बाद फिर शुरू होती है... नए कलेवर में। फिर एक नए रिश्ते का जन्म।
.... लेकिन हम किसी और जाल में फंस जाते हैं। झगड़ते हैं.... तुम बदल गए... वो बदल गया... रिश्ता बदल गया। हालांकि ये भी बेहद ज़रूरी है।
सोचिए एक दिन आपका करीबी कहे.... यार देखो... मुझे लगता है ज़रूरत जो है न... वो ख़त्म हो रही है तो अब यहीं स्टॉप लगा लो।
अजीब लगेगा न सुनने में।
इतना प्रैक्टिकल चलेगा नहीं।
जब तक चार सेंटी शायरियां और तीन-चार रफ़ी साहब के गाने न सुन ले तब तक मज़ा कहां....।
खैर.... ज़रूरी है ज़रूरत .... बाकी बदलना तो सब कुछ ही है एक दिन।
इन सवालों से कोई बचा रह गया है क्या? क्या कभी ऐसा सवाल आपके मन में नहीं आया?
आया है.... ज़रूर आया है और हर बार आपने बहाना बनाया है...। लोग बदल जाते हैं... हालात बदल जाते हैं... रिश्ते बदल जाते हैं। क्यों... इसी तरह समझाया है न खुद को।
मुझे लगता है कि बदलती है तो सिर्फ ज़रूरत।
ये ज़रूरत बड़ी चीज़ है। किसी भी रिश्ते के लिए ऑक्सीजन है। ये ख़त्म तो रिश्ता भी ख़त्म। खास बात ये है कि ऑक्सीजन की तरह ये भी एकदम से ख़त्म नहीं होती। धीरे-धीरे शुरू होकर धीरे-धीरे ही ख़त्म होती है।
कैसे जन्म लेता है कोई रिश्ता...?
खासकर वो रिश्ते जो हमें विरासत में नहीं मिलते।
एक ज़रूरत से....। ज़रूरत उस कान की जो सुने हमें। उन पैरों की जो साथ चले।
ज़िन्दगी के खालीपन को भरने की या जो कुछ भरा हुआ है मन में उसे निकालने की ज़रूरत।
जहां से ये ज़रूरत पूरी होती दिखी वहां बन गया रिश्ता। फिर....। फिर ज़रूरत पूरी हो गई।
जब कुछ पूरा हो जाता है तब वो अपनी अंतिम अवस्था में आ जाता है।
ज़रूरत पूरी यानी ख़त्म हो रही है। ये बात और है कि दो लोगों के बीच के रिश्ते में किसी की ज़रूरत पहले ख़त्म हो जाए और किसी की कुछ देर बाद। पर जब एक की ख़त्म हो जाती है तो ऑक्सीजन कम हो जाता है।
फिर दूसरे की ज़रूरत को ख़त्म होना पड़ता है।
.... चांद पूरा होने के बाद फिर शुरू होता है।
ज़रूरत ख़त्म होने के बाद फिर शुरू होती है... नए कलेवर में। फिर एक नए रिश्ते का जन्म।
.... लेकिन हम किसी और जाल में फंस जाते हैं। झगड़ते हैं.... तुम बदल गए... वो बदल गया... रिश्ता बदल गया। हालांकि ये भी बेहद ज़रूरी है।
सोचिए एक दिन आपका करीबी कहे.... यार देखो... मुझे लगता है ज़रूरत जो है न... वो ख़त्म हो रही है तो अब यहीं स्टॉप लगा लो।
अजीब लगेगा न सुनने में।
इतना प्रैक्टिकल चलेगा नहीं।
जब तक चार सेंटी शायरियां और तीन-चार रफ़ी साहब के गाने न सुन ले तब तक मज़ा कहां....।
खैर.... ज़रूरी है ज़रूरत .... बाकी बदलना तो सब कुछ ही है एक दिन।
बिलकुल सही कहा शुभी जी अपने......... :)
ReplyDeleteAchha likha hai.. sahi bhi hai..
ReplyDeleteZarurat ke hisaab se hi bante aur chalte hain aajkal ke rishte..
Well thought..
Achha likha hai.. sahi bhi hai..
ReplyDeleteZarurat ke hisaab se hi bante aur chalte hain aajkal ke rishte..
Well thought..