Aagaaz.... nayi kalam se...

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Kya likhun...???

Sunday, January 22, 2012

न जाने किसके लिए...


मां को याद आता होगा अक्सर,

कि, मैं इस वक्त तक भूखा हो जाता था,

कौर वो भी न तोड़ पाती होगी,

जब रसोई में वो छोटी थाली दिखती होगी,

अक्सर मेरी पुरानी कमीज में ढ़ूढती होगी मेरा बचपन,

जो अब भी उसने लोहे वाले पुराने बक्से में रखी है,

बगल वाला भोलू जब भी अपनी मां को पुकारता होगा,

वो भी एक बार मुड़ तो जाती होगी,

दुआ तो देती होगी कि बन जाऊं अफसर मैं,

मगर घर लौटने का रस्ता भी तकती होगी,

कहां अलग हूं मैं भी मां से, मगर कह नहीं सकता,

बस उलझा हूं झूठे कागज़ों को जोड़ने में,

न जाने किसके लिए...

-शुभी चंचल

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