अभी हाल ही में दोस्तों के साथ स्वर्ण मंदिर जाने का मौका मिला... रात के करीब ११ बजे हम पहली बार मंदिर पहुंचे, हम सब उस नज़ारे को निहार रहें थे... सब शांत थे.... सभी के मन में कई भावनाएं थीं... उस वक़्त मेरे ज़ेहन में कुछ पंक्तियाँ आई... जो मैंने लिखी है... ये उन पलों के लिए है जो उस समय मैंने बिताये.. और उन दोस्तों के लिए जो उन पलों के गवाह बने.... शुक्रिया- सोम, श्वेता, अंकुला, शांतनु, क्षितिज...
पीली चादर ओढ़े ये लहरें जब हिलती है,
मन की रोशनी के साथ उम्मीदें मिलती है,
मन पानी पर ही दौड़ जाता है, यूँ ही,
करता है सजदा बार-बार,
रब से सारी दूरी मिट जाती है,
हर आहट पर महसूस होती है मौजूदगी उनकी,
दुनिया वहीँ पर सिमट जाती है,
महसूस की है इबादत की सिहरन मैंने,
मेरी रूह तक सिहरी है रब की नजदीकियों से,
खुशनसीबी मेरी कि ऐसा दीदार हुआ,
एक बार नही बार-बार हुआ...
-शुभी चंचल
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