Aagaaz.... nayi kalam se...

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Monday, April 23, 2012

...वो वक़्त वो घड़ियाँ


हर वक़्त याद आती है वो घड़ियाँ,
पर वो वक़्त वो घड़ियाँ अब नहीं रही,
जब जल्दी में भूलती थी कलम अपनी,
और लिखते समय बैग खंगालती थी,
जब चढ़ते हुए सीढ़ी खोजती थी एक चेहरा,
और दिखने पर मुस्कुरा देती थी,
हर वक़्त याद आती है वो घड़ियाँ,
पर वो वक़्त वो घड़ियाँ अब नहीं रही,
जब करती थी टन-टन घंटी का इंतज़ार,
फिर जल्दी से डिब्बे खाने के खोल देती थी,
जब खाली घंटे में भागती थी बतियाने को,
और वो सारे राज़ अपने बोल देती थी,
जब उनकी ख़ुशी के लिए दुआ में हाथ उठाते थे,
और रब से बात करते-करते रो देती थी,
हर वक़्त याद आती है वो घड़ियाँ,
पर वो वक़्त वो घड़ियाँ अब नहीं रही,
जब छुट्टी होना वक़्त होता था बिछड़ने का,
और दोस्त की हँसी ठेले से मोल लेती थी,
हर वक़्त याद आती है वो घड़ियाँ,
पर वो वक़्त वो घड़ियाँ अब नहीं रही...
-शुभी चंचल

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