Aagaaz.... nayi kalam se...

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Wednesday, April 4, 2012

इम्तियाज़ की नायिका...3


रॉकस्टार

इम्तियाज़ अली की एक खासियत है कि उनकी फिल्मों में नए-पुराने, सही-गलत का द्वंद्व जरुर रहता है। चाहे उनकी फिल्म ‘जब वी मेट’ हो, ‘लव आज कल’ हो या फिर ‘रॉकस्टार’। ‘जब वी मेट’ की नायिका और ‘लव आजकल’ का नायक इसी द्वंद्व से जूझते हैं। यहां रॉकस्टार में फिर नायिका इसी का शिकार होती है और नायक आखिर तक इसी से जूझता दिखता है। गायिकी की ऊंचाईयां छूने की ख्वाहिश में जनार्दन जाखड़ (रणबीर कपूर) दर्द की तलाश में फिरता है और यहीं दर्द उसे आखिर तक रॉकस्टार बनने के बावज़ूद नही छोड़ती। कश्मीरी मूल की हीर (नर्गिस फाकरी) जनार्दन को जॉर्डन बनाती है पर साथ ही उसे तो दर्द में डूबाती ही है खुद भी झुलस जाती है। दोनों का प्यार पनपता है, बिछड़ता है, मिलता है। शुरुआत में जिंदगी को शिद्दत से जीने की तमन्ना रखने वाली हीर गलत-सही के द्वंद्व में फंस जाती है। वह इसी फेर में जॉर्डन को ठुकराती है। जॉर्डन अपना मकसद खो बैठता है, गायिकी में आवारगी मिला देता है। अंदर-अंदर हीर अपने दर्द को झेलने की कोशिश करती है पर हार जाती है। एक बार फिर इम्तियाज़ अली की नायिका को नायक की जरूरत पड़ती है। फिल्म के बाद इम्तियाज़ ने जताना भी चाहा है कि सही-गलत, नियम-कानून के पार भी सोचा जाना चाहिए। जिंदगी को नियमों से बांधना क्या जीने से रोकना नहीं है? और फिर जब ये नायिका पर ज्यादा हावी दिखे। फिल्म में हल्के-फुल्के दृश्यों में भी स्त्री-चेतना के सवाल जो उठाये गए हैं महत्वपूर्ण हैं।

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