
लिखती है कोई लेख, कोई कविता,
मिलती है अक्सर मुझे,
आलोचनाएं और कभी प्रशंसा भी,
पढ़ते है मुझे साथी मेरे, कभी कुछ बड़े भी,
कल यूं ही कलम उठाई मैंने,
मोड़ी अपनी उंगलियां फिर,
अचानक कौंध आई ज़ेहन में,
मेरी उंगलियों के पास एक हथेली,
हथेली थी बाबा की,
हथेलियां जिनमें मेरी उंगलियां समाई थी,
कभी मोड़ कर मेरी तीन उंगलियों को,
सिखाया मुझे लिखना,
जब पहली दफा थाम कर मेरी उंगली,
खिंचाई होगी रेखा एक
और वो रेखा सीधी न होकर, भटकी होगी राह से तब,
बाबा को गुस्सा आया होगा,
मगर फिर से कोशिश की होगी,
मेरे साथ वो भी देते आए होगे परीक्षा मेरी,
आज मेरी लिखावट को पढ़कर,
क्या आता होगा ज़ेहन में बाबा के,
क्या पास कर ली है मैंने परीक्षा अपनी, उनके साथ भी,
या आज भी उन्हें महसूस होती होगी,
कमी अपनी, मेरी तैयारी में...
-शुभी चंचल
Hair raising again... :)
ReplyDeletebehtreen...hr baar ki trh
ReplyDeletebhut khoob kahi ....
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